tag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post8040334108058047911..comments2024-03-11T07:53:35.778+05:30Comments on इयत्ता: ...यूं ही कभू लब खोलें हैंइष्ट देव सांकृत्यायनhttp://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-65377163425467572632007-08-14T22:34:00.000+05:302007-08-14T22:34:00.000+05:30फिराक के बारे में आपका ये लेख पसंद आया शुक्रिया ! ...फिराक के बारे में आपका ये लेख पसंद आया शुक्रिया ! :)Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-92087667422398145522007-08-14T15:36:00.000+05:302007-08-14T15:36:00.000+05:30भाई उड़न तश्तरी जी और संजय जी आपके सुझावानुसार मैन...भाई उड़न तश्तरी जी और संजय जी <BR/>आपके सुझावानुसार मैने फॉण्ट की साइज़ तो बढ़ा दी. <BR/><BR/>भाई चंदू जी <BR/>बात आपकी बिल्कुल सही है. फिराक की ज्यादा निकटता शैव दर्शन से है. पर चेतना के स्तर पर मार्क्सवाद से भी उनका जुडाव था. मार्क्सवादी तो नहीं, पर सिम्पेथाइज़र जरूर कहे जा सकते हैं. और जिंदां दरअसल यूनीकोड में आ नहीं रहा था, तो उसे मैने आपकी टिप्पणी से कपिया कर चेप दिया है. धन्यवाद. <BR/><BR/>भाई सागर जी <BR/>फ़ुरसतिया जी का लिंक देने के लिए धन्यवाद. अब उसे मैने यहाँ से भी जोड़ दिया है. सचमुच दिलचस्प है.इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-57802962651189183172007-08-14T11:55:00.000+05:302007-08-14T11:55:00.000+05:30फ़िराक गोरकपुरी पर आपका लेख पढ़ना सुखद रहा। मेरी भी ...फ़िराक गोरकपुरी पर आपका लेख पढ़ना सुखद रहा। <BR/>मेरी भी यही उम्र थी जब रघुपति सहाय फ़िराक गोरखपुरी साहब का निधन हुआ था, तब तक मैने भी फ़िराक साहब के बारे में कुछ नहीं पढा था।<BR/> पिताजी को उदास देखकर मैने जब उनसे पूछा तो पिताजी ने कारण बताया और फिराक साहब की कविता माँ मुझे पढ़वाई। और मैं तब से फ़िराक साहब का प्रशंषक बना। <BR/>आदरणीय फुरसतियाजी (अनूप शुक्लाजी) ने मेरे अनुरोध पर फ़िराक गोरखपुरी की यह लम्बी कविता (दस पन्नों की) अपने ब्लॉग पर प्रकाशित भी की थी और फ़िराक साहब के जीवन पर भी उसमें विस्तार से लिखा था।<BR/>मैं उस लेख का लिंक यहाँ दे रहा हूँ। <BR/><A HREF="http://hindini.com/fursatiya/?p=142/" REL="nofollow">रघुपति सहाय फ़िराक़’ गोरखपुरी</A>Sagar Chand Naharhttps://www.blogger.com/profile/13049124481931256980noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-84544584134111056862007-08-14T11:24:00.000+05:302007-08-14T11:24:00.000+05:30ज्ञानदत्त जी, (इष्टदेव जी से क्षमायाचना सहित), शेर...ज्ञानदत्त जी, (इष्टदेव जी से क्षमायाचना सहित), शेर का सही स्वरूप यह है-<BR/><BR/>कैद क्या रिहाई क्या, है हमीं में हर आलम<BR/>चल पड़े तो सहरा है, रुक गए तो जिंदां है।<BR/><BR/>...यानी जिंदगी अगर चलती रहे तो रेगिस्तान है और रुक जाए तो जेलखाना है...बंधन और मुक्ति के अलग से कोई मायने नहीं होते, क्योंकि सारा कुछ अंततः अपने मन की कारस्तानी है।<BR/><BR/>और हां, मार्क्सवाद से फिराक का सिर्फ कोई बौद्धिक रिश्ता शायद हो तो हो। उनकी सोच और शायरी आद्योपांत वैदिक या वेदांती दर्शन से प्रभावित रही है... इस तरह की घोषणा वे एकाधिक बार कर चुके थे और उनकी शायरी (इस खास शेर समेत) इसका जीता-जागता प्रमाण है।चंद्रभूषणhttps://www.blogger.com/profile/11191795645421335349noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-86584202970670787712007-08-14T07:48:00.000+05:302007-08-14T07:48:00.000+05:30फिराक की सबसे दिलचस्प बात मुझे उनका रोमांटिसिज्म...फिराक की सबसे दिलचस्प बात मुझे उनका रोमांटिसिज्म लगती है । जिस तूफानी तरीके से उन्होंने अपनी रोमांटिक शायरी लिखी है वो निराला है, उर्द गजल के क्लासिकी अंदाज के साथ साथ फिराक में आधुनिकता है वो अपनी मार्क्सवादी सोच को अपने रोमांटिसिज्म में मिलाकर बड़े ही अनूठे अंदाज में पेश करते हैं ।Yunus Khanhttps://www.blogger.com/profile/12193351231431541587noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-73083474700676091722007-08-14T04:37:00.000+05:302007-08-14T04:37:00.000+05:30बढ़िया है जी।बढ़िया है जी।ALOK PURANIKhttps://www.blogger.com/profile/09657629694844170136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-61545635575675566002007-08-14T03:10:00.000+05:302007-08-14T03:10:00.000+05:30साहिरजी की खूबसूरत गजल पढवाने के लिये ध्न्यवाद,आपक...साहिरजी की खूबसूरत गजल पढवाने के लिये ध्न्यवाद,<BR/>आपकी इस पोस्ट से प्रेरित होकर मैने अपने चिट्ठे पर उनकी इस गजल को जिसे जगजीत सिंह ने गाया है पोस्ट की है, गौर फ़रमाईयेगा..<BR/>http://antardhwani.blogspot.com<BR/>साभार,<BR/>नीरजNeeraj Rohillahttps://www.blogger.com/profile/09102995063546810043noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-50369901581318785822007-08-14T00:27:00.000+05:302007-08-14T00:27:00.000+05:30लो जी महराज यही शिकायत लेकर टिप्पणी करने आये थे कि...लो जी महराज यही शिकायत लेकर टिप्पणी करने आये थे कि इष्टदेव जी फाण्ट थोड़े और छोटे कर दीजिए तब कम्प्यूटर में घुसकर पढ़ेंगे. लेकिन समीर जी ने पहले ही सुझाव दे दिया है.Sanjay Tiwarihttps://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-76990970542217176502007-08-13T21:24:00.000+05:302007-08-13T21:24:00.000+05:30फिराक साहब की बात ही जुदा है. अच्छा लगा आपको पढ़कर....फिराक साहब की बात ही जुदा है. अच्छा लगा आपको पढ़कर.<BR/><BR/>आप ब्लॉग के फॉन्ट थोड़े से बड़े कर सकें तो पढ़ना सरल हो जाये. अगर संभव हो तो.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-989796900809226582007-08-13T19:38:00.000+05:302007-08-13T19:38:00.000+05:30फ़िराक हमेशा फैसिनेट करते रहे - अब भी करते हैं. पर ...फ़िराक हमेशा फैसिनेट करते रहे - अब भी करते हैं. पर दिक्कत यही है कि उर्दू में अपना हाथ बहुत तंग है. <BR/>यह आप का लिखा बहुत अच्छा लगा. <BR/><B>क़ैद क्या रिहाई क्या है हमीं में हर आलम<BR/>चल पडे तो सेहरा है रूक गए तो ज़िंदा है.</B>Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-4153287473984198842007-08-13T18:50:00.000+05:302007-08-13T18:50:00.000+05:30यकीनन फिराक साहब को ज़िंदगी ही नहीं, भाषा की भी गह...यकीनन फिराक साहब को ज़िंदगी ही नहीं, भाषा की भी गहरी समझ थी। वो हिंदी को कोई भाषा नहीं मानते थे। हिंदवी या हिंदुस्तानी ही उनके मुताबिक असली भाषा है। वो गाली देकर कहते थे कि हज़ार लोगों में एक हिंदी साहित्यकार को खड़ा कर दो, मैं पहचान लूंगा। हां, एक बात और मैंने भी फिराक को देखा था और ये शेर भी उनसे सुना था कि आनेवाली नस्लें...अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.com