tag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post7385913299055871343..comments2024-03-11T07:53:35.778+05:30Comments on इयत्ता: अथातो जूता जिज्ञासा-5इष्ट देव सांकृत्यायनhttp://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-21302276640816544992009-02-06T12:30:00.000+05:302009-02-06T12:30:00.000+05:30खाया बुश ने प्रथम फिर पड़ा चीन पर जाय,इजरायल को भी...खाया बुश ने प्रथम फिर पड़ा चीन पर जाय,<BR/>इजरायल को भी दिया जूते ने समझाय । <BR/>जूते ने समझाय कहा हमको वो खाए , <BR/>मुंह की भाषा जिसे न बिल्कुल समझ में आए । <BR/>है तो अपरम्पार इष्ट जूते की माया ,<BR/>जरदारी ने जाने क्यों अब तक न खाया । <BR/>- ओमप्रकाश तिवारीओमप्रकाश तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/13888234968041677418noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-47145009961302703142009-01-31T01:04:00.000+05:302009-01-31T01:04:00.000+05:30कोई बात नहीं, अबसे शामिल हो जाइए सिद्धार्थ जी और अ...कोई बात नहीं, अबसे शामिल हो जाइए सिद्धार्थ जी और अपने अर्थ को सिद्ध कराने के lie प्रेम से बोलिए - जूता जी की जय.इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-44629975827152110372009-01-31T00:56:00.000+05:302009-01-31T00:56:00.000+05:30मैं तो इस पादुका परिचर्चा से अबतक दूर होने के कारण...मैं तो इस पादुका परिचर्चा से अबतक दूर होने के कारण पछता रहा हूँ। इधर कुछ दूसरे कामों में ज्यादा समय देना पड़ा ताकि जूता न पड़ जाय।<BR/><BR/>बहुत अच्छी चर्चा। गुरुदेव ज्ञानदत्त जी की बात पर अमल शुरू हो। जय हो...।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-66864724692584992882009-01-30T19:41:00.000+05:302009-01-30T19:41:00.000+05:30स्कूल में एनसीसी के जूतों के लिए बहुत मारा मारी हो...स्कूल में एनसीसी के जूतों के लिए बहुत मारा मारी होती थी,उन जूतों को हासिल करने के लिए बच्चों के बीच खूब होड़ होती थी...स्कूल तो स्कूल घर में भी बच्चे उन जूतों को बड़े शान से पहनते थे, उनको पहनकर सरकारी शक्ति का अहसास होता था। <BR/>जूतों का सीधा संबध सैनिक तंत्र से भी है। बिना जूतों की सेना की कल्पना आप कर ही नहीं सकते हैं। अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम में जूतों ने महत्पपूर्ण भूमिका निभाये थे। वाशिंगटन के नेतृत्व में लड़ने वाली अमेरिकी सेना के पास सिविलियन जूते थे, जो जल्दी ही फट गये, जबकि ब्रिटिश सेना के पास सैनिक जूते थे। जूतों के अभाव में वाशिंगटन की सेना पहाड़ों, पत्थरों और जंगलों में खाली पैर घूमती थी। और मजूबत जूतों के बल पर आगे बढ़ते हुई ब्रिटिश सैनिक उन्हें उनके पैर के खून के निशान के सहारे पकड़ लेती थी। <BR/>भारत में भी ब्रिटिश सैनिकों के जूते भारतीय योद्धाओं से मजूबत थे। भारतीय योद्धाओं के जूते लड़ने के अनुकूल नहीं था, जबकि ब्रिटिश सैनिकों के जूते ठोस थे। कहा जा सकता है कि दुनियाभर में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना मजबूत जूतों के बल पर हुई। नाजीविदियों ने शायद इस रहस्य को समझा था, इसलिए उन्होंने अपने सैनिकों की मजबूती के लिए जूतों की मजबूती पर ज्यादा ध्यान दिया था। रूसी सैनिकों के जूते भी खासा मजबूत थे,इन्हें खासतौर पर बर्फ पर चहने के अनुकूल के बनाया गया था। <BR/>वैसे कभी-कभी जूते युद्ध क्षेत्र में खुद अपनी सेना के लिए बोझ भी बन गये हैं, जैसे वियतनाम युद्ध के दौरान अमेरिकी सैनिकों के जूतों। वियतनाम के जंगलों में दलदल में फंसने के बाद अमेरिकी सैनिकों के जूतों का बोझ दोगुना हो जाता था, जिसके कारण अमेरिकी सैनिकों को वियतनाम में अपने जूते छोड़ कर भागने पड़े थे। मुझे लगता है कि यदि दुनिया में किसी भी सेना की मजबूती का अंदाजा लगाना हो तो पहले उसके जूतों की मजबूती का पता लगाना चालिये। पुराने समय में आदि विद्रोही स्पार्टकस की सेना की हार पीछे रोमनों के मजूबत जूते प्रमुख कारण थे। स्पार्टकस की किसान और विद्रोही सेना के पास जूतों का पूरी तरह से अभाव था। रोमनों के साथ खूनी लड़ाई के बाद स्पार्टकस की सेना की पूरी कोशिश होती थी कि मारे गये सभी रोमन सैनिकों के जूते उतार लिये जाये। जूता शास्त्र में पुरी दुनिया का मिलिटरी साइंस आ सकता है,क्योंकि जमीनी सैनिकों का मूवमेंट बहुत हद तक जूतों की मजबूती और कुशलता पर निर्भर करता है। मिलिटरी साइंस के साथ-साथ जूतों का इस्तेमाल खुफिया जगत में भी खूब हुआ है। गुप्त संदेशों को इधर से उधर छुपाकर ले जाने में जूतों की भूमिका अति महत्वपूर्ण रही है। भारतीय फिल्मों में भी जूतों को खुफिया जगत से जोड़कर बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया है। फिल्म चरस में धमेन्द्र एक सीआईडी अधिकारी बने हुये हैं और अजीत के अड्डे पर जाकर वहां की सूचना अपने बड़े अधिकारियों को अपने जुते में लगे ट्रांसमीटर के जरिये देते हैं। <BR/>जूतों का क्रमश इतिहास सीधे सभ्यता के इतिहास से जुड़ा हुआ है। शायद आगे की खोज के बाद इनसान की दूसरी महत्पपू्रर्ण खोज जूते ही थी। आग की खोज और चक्के के अविष्कार के बीच में जूता खड़ा है। इनसान ने अपने शरीर के संवेदनशील अंगो को ढकने के लिए भले तमाम तरह के साधनों का इस्तेमाल किया,लेकिन जूतों का निर्माण निसंदेह पैर की सुरक्षा के लिय प्रथम प्रथम बार किया होगा,समय के साथ जूते विलासिता और वैभव के रूप में नया रूप अख्तियार करते चले गये। लेकिन जूतों के निर्माण में शिकारी और सैनिक मनोवृति काम कर रहा था। जूतों के उदगम के पीछे मानव सुरक्षा की भावना काम कर रही थी। <BR/> <BR/>जूतों के उदगम के पीछे मानव सुरक्षा की भावना काम कर रही थी। शुरु से ही जूतों के निर्माण के लिए जानवरों के खालों का इस्तेमाल किया जा रहा था,और जानवरों के खालों का सीधा संबंध शिकार से है। इसलिए जूतों का अवतरण बैल गाड़ी के पहिये के इस्तेमाल से बहुत पहले हुआ था और सभ्यता के विकास का आधार जूता ही बना। आज पूरी दुनिया में जूतों की कीमत से आदमी की कीमत आंका जाता है, आज भी सभ्यता का आधार जूता ही है। कौन देश कितना जूता इस्तेमाल करता है। किस देश में जूतों की खपत कितनी है। दूनिया के किस देश के लोग सबसे ऊंची कीमत वाली जूतों का ज्याद इस्तेमाल करते हैं,आदि के आधार पर बड़ी सहजता से कहा जा सकता है है कि दुनिया का कौन सा देश सबसे अमीर और कौन सा देश सबसे गरीब है। यानि जूतों की खपत के आधार पर किसी भी देश की इकोनॉमिक को आसानी से समझा जा सकता है। प्रत्येक वर्ष जूतों का निर्माण सैनिक हथियारों के निर्माण से ज्यादा होता होगा,क्योंकि जूतो की खपत सैनिक हलकों के साथ-साथ नागरिक हलकों में भी है। जूते की इकोनोमिक को यदि आधार बनाये तो, दुनिया की इकोनॉमिक की एक अलग तरीके से व्यख्या की जा सकती है। इकोनॉमिक आफ जूते के तहत इसे चैप्टरबद्ध कर सकते हैं। आपकी जूता शास्त्र मेरी खोपड़ी पर जूते चला रहा है, लगता है खूब जूते खाने के बाद आप इस शास्त्र को लिखने बैठे है। जहां तक मुझे याद है आप कहा करते हैं कि जब तक कोई चीज आपको जूते नहीं मारे,तब तक आप कलम उठा नहीं सकते।Alok Nandanhttps://www.blogger.com/profile/08283190649809379160noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-3260768833327484522009-01-30T18:15:00.000+05:302009-01-30T18:15:00.000+05:30अरे भाई जल्दी पोस्ट करिए योगेन्द्र जी.इस शोधग्रंथ ...अरे भाई जल्दी पोस्ट करिए योगेन्द्र जी.इस शोधग्रंथ में आपका नाम भी मैं जोडना चाहूंगा.इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-40034926071818470762009-01-30T17:36:00.000+05:302009-01-30T17:36:00.000+05:30This comment has been removed by the author.इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-32537229185914165092009-01-30T17:18:00.000+05:302009-01-30T17:18:00.000+05:30ईष्टदेव जी की जय हो.... बढ़िया और सटीक आलेख.. मैंन...ईष्टदेव जी की जय हो.... बढ़िया और सटीक आलेख.. <BR/>मैंने भी कुछ छंद जूतों पर लिखे थे अशोक चक्रधर के संचालन में सब टीवी पर प्रसारित वाह-वाह में पढ़े और सराहे वो छंद अपने ब्लाग पर कल दूंगा और आपको समर्पित करूंगा...योगेन्द्र मौदगिलhttps://www.blogger.com/profile/14778289379036332242noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-26231333373023236862009-01-30T17:15:00.000+05:302009-01-30T17:15:00.000+05:30bahut shandaar joota mara bhaibahut shandaar joota mara bhaimakrandhttps://www.blogger.com/profile/14750141193155613957noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-85053747082833049972009-01-30T15:51:00.000+05:302009-01-30T15:51:00.000+05:30जूते के साथ आपकी अपर श्रधा देख कर दिल बाग-बाग़ ह...जूते के साथ आपकी अपर श्रधा देख कर दिल बाग-बाग़ हो गया .इसे पढ़ कर पादुका वियोग पख्यानाम नमक रचना की याद आगे जो की मैंने बारहवीं में पढ़ी थी .shelleyhttps://www.blogger.com/profile/12438659284260544490noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-49181264146767437882009-01-29T22:02:00.000+05:302009-01-29T22:02:00.000+05:30भाई अनिल कान्त जी शुक्रिया. यकीन करें मैं सच कहूँग...भाई अनिल कान्त जी <BR/>शुक्रिया. यकीन करें मैं सच कहूँगा. सच के सिवा और कुछ न कहूँगा.<BR/><BR/>ज्ञान भैया <BR/>आपने तो कुछ और नए आयाम दे दिए. धन्यवाद.<BR/><BR/>और भाई समीर लाल जी<BR/>वस्तुतः यह कोई शोध नहीं, बल्कि आप जैसे बड़े भाइयों से मिले अनुभव का ही प्रतिफलन है.इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-13622484105968912472009-01-29T21:40:00.000+05:302009-01-29T21:40:00.000+05:30क्या अनुभव है बॉस...शोधकर्ता आपको नमन!!क्या अनुभव है बॉस...शोधकर्ता आपको नमन!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-44377376655256370962009-01-29T21:31:00.000+05:302009-01-29T21:31:00.000+05:30जूते के प्रकारों पर चर्चा होनी चाहिये। खड़ाऊं, चट्ट...जूते के प्रकारों पर चर्चा होनी चाहिये। खड़ाऊं, चट्टी, चमरौधा जूता से होते हुये गुक्की जूतों तक की यात्रा की चर्चा बिना यह जूता जिज्ञासा अगर सिमट गई तो नीक नहीं लगेगा। <BR/>फिर मेहरारुओं की हाइहील्स के एटीकेट्स, पानी में रात भर भिगोये जूते थे थुराई और ९९ के बाद गिनती भूल फिर शुरू करना ... जाने क्या क्या है जूतालॉजिकल चर्चा में! :)Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-22070929236622498852009-01-29T21:18:00.000+05:302009-01-29T21:18:00.000+05:30जूते की बहुत सही सही बातें बताई आपने ...सच कहा ..औ...जूते की बहुत सही सही बातें बताई आपने ...सच कहा ..और सच चाहे कड़वा हो भले ही पर सच तो सच है ...<BR/><BR/><BR/>अनिल कान्त <BR/><BR/><A HREF="http://www.meraapnajahaan.blogspot.com/" REL="nofollow">मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति </A>अनिल कान्तhttps://www.blogger.com/profile/12193317881098358725noreply@blogger.com