tag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post6710689946472471881..comments2024-03-11T07:53:35.778+05:30Comments on इयत्ता: मोदी के सामने बुजुर्गों का आर्शिवाद पाने की चुनौतीइष्ट देव सांकृत्यायनhttp://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-27701961892741967152009-01-16T19:34:00.000+05:302009-01-16T19:34:00.000+05:30अज्ञात भाई, आप भूत हो, अदृशय रहकर लंटोगी खिंचा करत...अज्ञात भाई, <BR/>आप भूत हो, अदृशय रहकर लंटोगी खिंचा करते हो। <BR/>इतिहास की गलती को ठीक करना वर्तमान का काम है, राह में पड़े कांटों में चाणक्य ने मट्ठा झोंक दिया था...वह तक्षशिला से पठकर निकला था। खींचते रहो लंगोटी...लंगोटी पहनकर व्यास नदी की धारा में कूदना वाला नेता भारत को चाहिये....एक दो नहीं एसे हजारों नेता चाहिये...इस देश का प्रसव पीड़ा खत्म हो चुका है...Alok Nandanhttps://www.blogger.com/profile/08283190649809379160noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-21045800700339639352009-01-16T19:22:00.000+05:302009-01-16T19:22:00.000+05:30हमलोगों का संविधान ही एसा है। जनता को सीधे प्रधानम...हमलोगों का संविधान ही एसा है। जनता को सीधे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को चुनने का अधिकार नहीं है। प्रधानमंत्री का चुनाव जनता द्वारा संसद में भेजे गये प्रतिनिधि करते हैं, और यही प्रतिनिधि लोग राष्ट्रपति को भी चुनते हैं,यह गजब नहीं है। संसदीय मॉडल इंग्लैंड का है,जबकि राष्ट्रपति का मॉडल अमेरिका का है और इसी से गड्डमगड्ड होती है। अमेरिका में तो राष्ट्रपति के प्रतिभागी आपस में डिबेट करते हैं, यहां एसा कुछ नहीं होता है, सीधे ऊपर से थोप दिया जाता है। प्रधानमंत्री का मामला भी कुछ एसा ही है. यहां कि पार्टिया प्रधानमंत्री के तौर पर व्यक्ति को जनता के सामने प्रस्तुत करती है, कांग्रेस के बारे में तो सर्वविदित है कि गांधी परिवार से से ही प्रधानमंत्री आएगा...मनमोहन जी को प्रधानंत्री मानने की इच्छा नहीं होती है, वैसे मेरे मानने या ना मानने से कुछ नहीं होने वाला है। कॉरपोरेट भी इस डेमोक्रेटिक (यदि इसे डेमोक्रेटिक माना जाये)तंत्र का एक हिस्सा है, यदि वह मोदी को प्रधानमंत्री के तौर पर देख रहे हैं तो मैं नहीं समझता कि इसमें कोई बुराई है। कॉरपोरेट एक प्रेसर ग्रुप की तरह है, यदि यह प्रेसर ग्रुप के तौर पर भाजपा के ऊपर मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर खड़ा करने की बात कर रहा है,तो इसमें कहीं भी डेमोक्रेटिक नार्म का उल्लंघन नहीं हो रहा है। क्या आनेस्टली इस बात को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर एक सवेक्षण हो सकता है कि भारत में मोदी को प्रधानमंत्री के तौर पर कितने लोग चाह रहे हैं। इससे देश के नब्ज को टटोलने में मदद मिलेगा...हमें हर स्तर पर सर्तक रहना है,क्योंकि लादेनवादी अभी सबसे बड़ा खतरा है...लादेनवाद के खिलाफ कोई व्यक्ति ही खड़ा हो सकता है...भारत का पूरा सिस्टम विकेंद्रिति है...मांटेस्क्यू के शक्ति पृथककरण सिद्धात की यहां रेड लगा दी गई है...सिस्टम लादेनवाद वादी हमलों से लड़ने में कारगर नहीं है...यह लड़ाई पूरी तरह से व्यक्ति विशेष द्वारा लड़ी जाएगी...वैसे भी दुनिया में बड़ी-बड़ी लड़ाइयां व्यक्ति विशेष द्वारा ही लड़ी गई हैं...भारत में छद्म डेमोक्रेसी है,शासन और प्रशासन के स्तर पर। इसे एक करने के लिए भी मजबूती मेजोरिटी चाहिये, कॉरपोरेट भी मजबूत मेजोरिटी का एक हिस्सा है। बंगाल से नयनों को क्यों उखाड़ा गया...देश को लखटकिया कार की जरूरत थी,उद्योग जगत के लोग भी देश के औद्योगिक एकीकरण की ओर हैं,संगठित भारतीय कॉरपोरेट दुनिया के मार्केट को उड़ा सकता है, बर्शते उसे जनता का आधार दिया जाये, राष्ट्रीय स्तर पर कॉरपोरेट जगत को जनहित में मजबूत करने से डेमोक्रेसी उनके हाथों में नहीं जाएगी,बल्कि वे डेमोक्रेसी के एक मजबूत अंग के तौर पर काम करने में सक्षम हो जाएगी। अभी उन्हें आर्थिकमंदी से निबटना है,राष्ट्रीय स्तर पर इस मंदी से निपटने के लिए वे जनस्तर पर मजबूत हाथ की तलाश कर रहे हैं। मनमोहन साहब ने इकोनॉमिक ग्लोबलाइजेशन को भारत की मजबूरी बना दिया है। बंगाल से लखटकिया कार को हटाने के बाद, मार्क्सवादी इकोनोमी पर संदेह होता है,कम से कम देशहित के संदर्भ में। लखटकिया कार का प्रोजेक्ट वहां से हटकर कहां गया है। यदि उस प्रोजेक्ट को नहीं लगाना था तो यह निर्णय पहले क्यों नहीं हुआ। भारत के औद्योगिक विकास के फाल्ट का यह बेहतर नमूना है। औद्योगिक रूप से देश को एकीकृत करने की जरूरत है, और इसी मानसिकता के तहत देश में कॉरपोरेट जगत से मोदी का नाम उछल रहा है। देश की जनता को भी इस औद्योगिक एकीकरण और आद्योगिक सुरक्षा के हक में खड़ा होना ही होगा, मुंबई हमला पूरी तरह से आर्थिक हमला है, उद्योग जगत आर्थिक सुरक्षा चाह रहा है।Alok Nandanhttps://www.blogger.com/profile/08283190649809379160noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-51486120432091815432009-01-16T17:27:00.000+05:302009-01-16T17:27:00.000+05:30हमारे यहाँ प्रधान मंत्री बनने के लिए जनता के अनुमो...हमारे यहाँ प्रधान मंत्री बनने के लिए जनता के अनुमोदन की परम्परा पूरी तरह ख़त्म ही हो रही है क्या? पहले गठबंधन, फ़िर पार्टी और अब कारपोरेट घराने ... गजब! अब यही लोग मिलकर तय करेंगे की कौन लोग हमारे प्रधान मंत्री हों और कौन राष्ट्रपति? अगर यही लोकतंत्र है, फ़िर तो भाई बढ़िया था की हम पुराने ज़माने के राजतंत्र में ही ठीक थे.इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-8585791605828909802009-01-16T15:12:00.000+05:302009-01-16T15:12:00.000+05:30भाई हम मोदी के बारे ज्यादा तो नही जानते, एक दो बार...भाई हम मोदी के बारे ज्यादा तो नही जानते, एक दो बार यहां भारतीया टी वी पर देखा, सुलझा हुआ नेता लगा, बाकी बात यह है इस बार जो भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर आये, वो कुछ कर के भी दिखाये, <BR/>इस देश ने बहुत देख लिये झुठे सपने, हमे झुठे सपने , नही देखने, लाशो पर जन्मदिन नही मनाना, बल्कि इस देश को मान ओर सम्मान से ऊंचा लेजाना है, इस बार जो भी आये, शेर आये,<BR/>बहुत बहुत धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-39516731507317328532009-01-16T03:57:00.000+05:302009-01-16T03:57:00.000+05:30dekhnaa hoga warshon se sanjoye sapnon kaa balidaa...dekhnaa hoga warshon se sanjoye sapnon kaa balidaan kaise dega koi.aashirwaad mil bhi jaye to apne ittihaas aur wipaksh ke kaaton se pind chudaana tedhi kheer hoga.inke faasiwaad ko auron ki fusswaaditaa se acchaa samajhne waale logon ki kami nahi hi hogi.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-72565801227077133552009-01-15T23:03:00.000+05:302009-01-15T23:03:00.000+05:30काश मोदी ऐसा कर पाने में सफल हो पाते। आडवानी की घो...काश मोदी ऐसा कर पाने में सफल हो पाते। आडवानी की घोषित दावेदारी और राजनाथ सिंह की संकुचित दृष्टि से भाजपा को बाहर निकालकर राष्ट्रीय परिदृश्य पर पहले अपनी पार्टी और फिर अपने बहुलवादी देश का सर्वमान्य नेता बनना असम्भव नहीं तो अत्यन्त कठिन अवश्य है।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.com