tag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post3620990766748710880..comments2024-03-11T07:53:35.778+05:30Comments on इयत्ता: युधिष्ठिर का कुत्ता - दूसरी किश्तइष्ट देव सांकृत्यायनhttp://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-3117200987798918252010-12-17T13:39:45.131+05:302010-12-17T13:39:45.131+05:30वाह! क्या बात है! एक-एक पंक्ति में ठसाठस व्यंग्य ह...वाह! क्या बात है! एक-एक पंक्ति में ठसाठस व्यंग्य है. पढ़्ने से मन नहीं भरा. लगता है कि अभी कुछ और कुटाई शेष है!!!इष्ट देव सांकृत्यायनhttp://iyatta.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-14735002831804328532010-12-06T10:42:32.597+05:302010-12-06T10:42:32.597+05:30""यह भी एक शाश्वत सत्य है कि अपनी जाति ए...""यह भी एक शाश्वत सत्य है कि अपनी जाति एवं समाज की चिन्ता करने वाला कभी भी व्यक्तिगत विकास नहीं कर पाता है। यदि अपनी जाति के स्वाभिमान की चिन्ता मैं ही करता तो आज स्वर्ग पहुँच पाने वाला इकलौता आदरणीय कुत्ता नहीं बन पाता। मैं भी किसी पुरातन समाजवादी की भांति इधर-उधर के धक्के खाकर अबतक मर चुका होता या अज्ञातनामा जिन्दगी जी रहा होता। स्वर्ग का सुख शोषित समाज का साथ देकर नहीं पाया जा सकता और न ही अपनी जाति का अपकार करने वाले के प्रतिशोध की भावना रखकर। स्वर्ग का सुख या तो ऐसे लोगों की शरण में जाकर पाया जा सकता है या फिर अपनी जाति के लोगों को स्वर्ग का सपना दिखाकर। कम से कम लोकतंत्र में तो ऐसा..." और...<br /><br /> <br />"खैर , मुझे आजे इस बात का संतोष है कि जिस प्रकार का श्राप हमें मिला था, उसी प्रकार का कार्य आज मानव जाति भी करने लग गई है। उनका खुलापन देखकर मन को शांति मिलती है"<br /><br />---शानदार..... shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-25407118291296265392010-12-03T21:35:05.455+05:302010-12-03T21:35:05.455+05:30Ranjna ji,
Thanks a lot for your valuable comments...Ranjna ji,<br />Thanks a lot for your valuable comments, understanding, appreciating and evaluating with the same mood. <br />Hari Shanker RarhiHari Shanker Rarhihttps://www.blogger.com/profile/10186563651386956055noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-5568221111124238602010-12-03T21:10:43.788+05:302010-12-03T21:10:43.788+05:30इन्सान और कुत्ते में फर्क!
:)इन्सान और कुत्ते में फर्क!<br />:)भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-42946741417482063642010-12-03T15:20:55.196+05:302010-12-03T15:20:55.196+05:30सुगठित सार्थक व्यंग्य...सुगठित सार्थक व्यंग्य...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-16064492024506987752010-12-03T15:20:19.976+05:302010-12-03T15:20:19.976+05:30क्या लिखा है आपने...ओह !!!
लाजवाब...
हर वाक्य पर...क्या लिखा है आपने...ओह !!!<br /><br />लाजवाब...<br /><br />हर वाक्य पर तालियाँ बजने को हाथ स्वतः ही उत्सुक हो गए..<br /><br />" खैर , मुझे आजे इस बात का संतोष है कि जिस प्रकार का श्राप हमें मिला था, उसी प्रकार का कार्य आज मानव जाति भी करने लग गई है। उनका खुलापन देखकर मन को शांति मिलती है। भविष्य में जब वे यौन संबन्धों में पूरी तरह हमारा अनुसरण करने लगेंगे तो हमारे श्राप का परिहार हो जाएगा। अगर विकास ऐसे ही होता रहा तो वह दिन ज्यादा दूर नहीं है।"<br />क्या समीक्षा की है आपने...सचमुच यह दिन दूर नहीं लगता...<br /><br />"किसी ने यह प्रश्न नहीं उठाया कि धर्मराज ने अपने सगे भाइयों को भी तो दाँव पर लगाया था, इसका उन्हें क्या अधिकार था ? पर इस प्रश्न से कोई स्वार्थ नहीं सधता , कोई आन्दोलन नहीं बनता ।"<br /><br />एकदम सटीक !!!<br /><br /><br />"परन्तु आप इस बात पर विचार नहीं कर रहे कि वे सम्राट थे । ऐसा पहली बार हो रहा था कि एक सम्राट झूठ नहीं बोल रहा था। राजनीति में तो एक टुच्चा आदमी और एक छोटा मंत्री भी झूठ बोले बिना जीवन निर्वाह नहीं कर सकता । इस प्रकार उन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया था। "<br /><br />विद्रूप राजनीति पर करार प्रहार ....वाह !!! <br /><br />और अंतिम दो पारा....<br /><br />क्या बात कही है......<br /><br />मन आनंदित हो गया पढ़कर....रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-995679880272695615.post-11404194020812396252010-12-03T14:01:12.379+05:302010-12-03T14:01:12.379+05:30इस कथा के माध्यम से झन्नाट व्यंग।इस कथा के माध्यम से झन्नाट व्यंग।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.com