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Showing posts from June, 2018

शर्म तुमको मगर नहीं आती

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गैंगरेप की घटना का विरोध करते लोग   बगलें मत झाँकिए. जब जम्मू में रेप की ख़बर आई तो फिल्मी दुनिया की बाई जी लोगों को बड़े ज़ोर से शर्म आने लगी थी. जिस शख्स की लोकेशन घटना के वक़्त हर तरह मुजफ्फरनगर साबित हो चुकी है, उसे रेपिस्ट बताकर प्रदर्शन किए गए. पीड़िता के नाम पर लाखों रुपये का चंदा बटोरा गया और उसमें घपला भी किया गया. उस घपले को लेकर बंदरबाँट की लड़ाई भी हुई और उसी से पीछे की पूरी कहानी पता चली. वह मंदिर जो चारों तरफ़ से खुला हुआ है, जहाँ हमेशा लोगों का आना-जाना लगा रहता है और तहखाना बनाने का कोई उपाय भी नहीं है, उसमें महान पत्रकार लोग तहखाना तलाश ले आए. इसके पीछे के कारणों का ज़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है. अब तो वह लिस्ट भी सामने आ चुकी है, जिसमें उन महान पत्रकारों के नाम दर्ज हैं जिन्हें एक से डेढ़ लाख रुपये महीने की रकम कैंब्रिज एनलिटिका का ओर से केवल भारत विरोधी ख़बरें लिखने के लिए दी जा रही थी. अब इन्हें वह कहा जा रहा है, जो कहा जा रहा है, तो इसमें ग़लत क्या है? उस घटना के आरोपी को आरोपी कहने में लोगों को शर्म आ रही थी. उस आरोपी को जिसके बारे में हर तरह से साबित हो चुका ह

जाग मछेंदर गोरख आया-3

कल लिखने बैठा तो मन थोड़ा भन्नाया हुआ था. सोच ही नहीं पा रहा था कि शुरू कहाँ से करूँ. वजह कुछ ख़ास नहीं , बस एक दुविधा थी. दुविधा यह कि आगे की कड़ी बढ़ाएँ कहाँ से. मन यह बन रहा था कि पहले जन्म से जुड़े सारे मिथकों की सारी चर्चा कर ली जाए. क्योंकि पिछली पोस्ट में जिस मिथक ज़िक्र किया वह कई मिथकों में से एक ही है. वह जो लगभग उत्तर भारत में प्रचलित है. लगभग माने बिहार , उत्तर प्रदेश , पंजाब और हिमाचल तक. राजस्थान के कुछ भागों में यही मिथक है और कुछ में दूसरा. इसी से मिलता-जुलता. इसी से मिलती-जुलती कई लोकगाथाएँ कई दूसरे क्षेत्रों में भी हैं. लेकिन पूर्वोत्तर भारत में भिन्न. गुजरात में कुछ और भिन्न. नेपाल और तिब्बत में और भिन्न. एक और बात है. मिथक या कहें लोकगाथाएँ या लोकवार्ताएँ मुझे आकर्षित बहुत करती हैं. जानते हुए भी कि इनमें तथ्य कम , भाव ज़्याद है और तथ्य अगर है भी तो वह बहुत गूढ़ अर्थ या कह लें लक्षणा में मौजूद है , जिसे निकालना बहुत जटिल काम है ; मैं अपने को उनको उन्हें जानने और उनकी चर्चा करने से रोक नहीं पाता. लेकिन जरूरी मुझे यह लग रहा था कि पहले काल की चर्चा कर ली जाए. हाल

जाग मछेंदर गोरख आया-2

गोरख के साहित्य पर चर्चा हो , इसके पहले जरूरी है कि उनका मानवीकरण कर लिया जाए. वैसे यह मैं कोई नया काम करने नहीं जा रहा हूँ. बहुत पहले ही कई विद्वान कर चुके हैं . लेकिन चूँकि यह काम विद्वानों ने किया तो यह मोटी-मोटी किताबों में दफन होकर रह गया. बाक़ी का क्रियाकर्म कोर्स में कर दिया गया. लोक तो उन्हें देवता बना ही चुका है. वैसे इस पर मुझे एतराज नहीं. हो भी तो क्या कर लूंगा. यह प्रवृत्ति केवल हमारे ही लोक की नहीं है. यह दुनिया भर के लोक की प्रवृत्ति है. ख़ासकर उन विभूतियों के साथ जिनके साथ अध्यात्म और चमत्कार जुड़ा है. गोरख के तो जन्म के साथ ही चमत्कार जुड़ा है. चमत्कार या कहें मुश्किलों से निजात के साथ लोगों के सहज ही जुड़ जाने का जो कारण मेरी समझ में आता है , वह वही है जिसे ग़ालिब ने कुछ यूँ कहा है: इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई मेरे दुख की दवा करे कोई जिसने भी उसके दुख की कुछ दवा कर दी , उसी को उसने भगवान मान लिया. भोजपुरी में तो कहावत ही है , जे पार लगावे तेही भगवान. जो उसे संसार सागर पार करा दे , यानी जो उसके कष्टों को मिटाने की दिशा में कुछ क़दम आगे बढ़ा दे , वही उसके लिए भगवान

जाग मछेंदर गोरख आया-1

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ऐसा तो नहीं कि मैं गोरख को जानता न था. क्योंकि गोरखपुर में जन्मा. वहीं पला-बढ़ा. ढंग का जो कुछ सीखा, वहीं सीखा. अपनी मिट्टी छोड़ने के बाद तो इंसान जो कुछ सीखता है या दुनिया उसे जो कुछ सिखाती है, वह बिना सीखे निबह जाए तो बेहतर. तो गोरख को मैं जानता तो था बचपन से. लेकिन यह जानना बाबा गोरखनाथ के रूप में था. संत भी नहीं, कुछ-कुछ भगवान जैसा. शिवावतार कहे जाते हैं हमारे यहाँ बाबा गोरखनाथ. किंवदंतियां बहुत, स्पष्ट जानकारी कुछ नहीं. यह शायद भारतीय लोकमानस की खामी है. वह जिसे बड़ा मानता है, उसे बड़ा बना देता है कि भगवान से नीचे कुछ उसे स्वीकार ही नहीं होता. फिर गोरख तो गोरख ठहरे. यह केवल गोरख ही नहीं, कबीर के भी साथ हुआ. रैदास, दादू, मलूक, नानक, सूर, तुलसी, मीरा.... सबके साथ हुआ. 'जाग मछेंदर गोरख आया....' अपने गुरु तक को माया के पाश से मुक्त करने की औकात रखने वाले गोरख के साथ यह न होता, ये कैसे संभव था. तो गोरख के साथ भी हुआ. उन किंवदंतियों की मानें तो गोरख महाभारत काल में भी हुए. क्योंकि हमारे यहाँ गोरखनाथ के मंदिर में एक पोखरा यानी तालाब है. पोखरे के किनारे एक लेटे हु

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