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Showing posts from April, 2013

स्वर एकादश: अग्निशेखर और केशव तिवारी की आवाज़

डॉ. गणेश पाण्‍डेय बोधि प्रकाशन ने ग्यारह कवियों का एक अच्छा संकलन ‘स्वर-एकादश’ निकाला है। इस संकलन की वजह से कई कवियों ने खासतौर से ध्यान खींचा है। संकलन में संकलित कवियों के स्वर की विविधता ने ही नहीं, बल्कि तीव्रता ने भी चौंकाया है। इनमें कई ऐसे कवि हैं जो काफी समय से लिख रहे हैं। अलग-अलग अवसरों पर उनकी कविताओं ने पहले भी ध्यान खींचा है। पर यहाँ ठहर कर और एक साथ कई कवियों की रोशनी के बीच देखने पर इनका महत्व बढ़ जाता है। भूमिका में ठीक ही कहा गया है कि इनके स्वर अलग-अलग हैं। हर कवि के स्वर की निजता कविकर्म की बुनियाद है। जो कवि अपने कविता-संसार में अपनी निजता की रक्षा नहीं कर पाते हैं, वे अपनी कविता को नकली कविता की जमात में पहुँचा देते हैं। अच्छे कवि विचारधारा के आग्रह के बावजूद कविताई में अपनी छाप रखते हैं। विचारधारा ही नहीं, संवेदना के स्तर पर भी हर मजबूत कवि अपनी निजता को बचाये रखता है। तभी उसकी कविता नकल होने से बचती है। इस संग्रह की कविताओं में अपने परिवेश के प्रति जो लगाव है, दरअसल वह कवि जीवन का कविता के प्रति स्वाभाविक व्यवहार है। प्रकृति, समाज, रिश्ते, प्रेम इत्यादि स

प्रदीप सक्‍सेना को डॉ.रामविलास शर्मा आलोचना सम्‍मान

जोकहरा स्थित श्री रामानन्‍द सरस्‍वती पुस्‍तकालय में  ‘ गोष्‍ठी : इतिहास और आलोचना ’  विषय पर आयोजित एक भव्‍य समारोह में हिंदी के सुप्रसिद्ध आलोचक प्रो.नामवर सिंह ने प्रो.प्रदीप सक्‍सेना को शॉल ,  प्रशस्ति पत्र ,  नगद राशि प्रदान कर वर्ष 2012 का डॉ.रामविलास शर्मा आलोचना सम्‍मान से सम्‍मानित किया। श्री रामानन्‍द सरस्‍वती पुस्‍तकालय , जोकहरा ,  केदार शोध पीठ (न्‍यास) ,  बॉंदा ,  डॉ.रामविलास शर्मा आलोचना सम्‍मान आयोजन समिति की ओर से प्रदान किए जाने वाले सम्‍मान समारोह के दौरान महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय ,  वर्धा के कुलपति विभूति नारायण राय ,  वरिष्‍ठ साहित्‍यकार प्रो.निर्मला जैन , प्रो.चौथीराम यादव ,  भारत भारद्वाज ,  दिनेश कुशवाह ,  प्रदीप सक्‍सेना ,  रमेश कुमार मंचस्‍थ थे।        अध्‍यक्षीय वक्‍तव्‍य में प्रो. नामवर सिंह ने कहा कि हिंदी आलोचना में जिस तरह के साध्‍य की जरूरत है वह हिंदी में विरल होती जा रही है। रामविलास शर्मा ने जो श्रम और साधना की हिंदी आलोचना के लिए ,  उस परंपरा में एक मात्र हिंदी आलोचक प्रदीप सक्‍सेना दिखाई देते हैं। प्रदीप सक्‍सेना ने अपने

हिंदी विवि से जुड़े ऋतुराज, विनोद और दूधनाथ

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कवि ऋतुराज ,  कवि -उपन्यासकार विनोद कुमार शुक्ल तथा साठोत्तरी कथा पीढ़ी के प्रमुख स्तंभ दूधनाथ सिंह महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के तीन नये अतिथि लेखक होंगे। प्रसिद्ध कथाकार व कथालोचक विजय मोहन सिंह तथा कथाकार संजीव का कार्याकाल समाप्त होने पर कुलपति विभूतिनायायण राय ने ये नियुक्तियां की हैं। कविता के वाद-प्रतिवाद और तथाकथित गुटबंदी परक आंदोलनों से दूर ऋतुराज सातवें दशक के एक विरल कवि हैं। कविता की प्रखर राजनैतिकता के दौर में उन्होंने अपनी काव्यभाषा के लिये एक नितांत निजी मुहावरा रचा और अँगीठी में सुलगती आग की तरह उनकी कविताएँ आज भी नये कवियों के लिए अपरिहार्य बनी हुई हैं। अपने उपन्यास दीवार में खिड़की रहती थी के लिये साहित्य अकादमी से पुरस्कृत कवि -उपन्यासकार विनोद कुमार शुक्ल सही मायने में हिंदी के जीनियस रचनाकार हैं। नौकर की कमीज , दीवार में खिड़की रहती थी और खिलेगा तो देखेंगे नाम से उनके तीन उपन्यासों की त्रयी ने एक तरह से भारतीय निम्न मध्यवर्ग का एक आधुनिक महाकाव्यात्मक शास्त्र रचा है । शब्द और उनके अर्थो की विच्छिन्नता के इस दौर में उनकी कवितायें

ग़ज़ल

इष्‍ट देव सांकृत्‍यायन क्‍यों कर इतना उलझा मैं ताना-बाना ढूंढ रहा हूं पल भर शीश छिपाने को आशियाना ढूंढ रहा हूं वर्षों पहले एक खिलौना लिया था मैंने मेले में नए खिलौनों से ऊबा मैं, वही पुराना ढूंढ रहा हूं किसी के मन का कहां यहां कुछ होता है कब जो है उससे जुडने का नया बहाना ढूंढ रहा हूं जिससे कई दिनों से मिलना हो न सका ऐसे ही कई दिनों से उसका ही पता-ठिकाना ढूंढ रहा हूं कहकर और सपर कर अकसर लड़ने आता था बचपन का वह दोस्‍त दिवाना ढूंढ रहा हूं मीलों पैदल चल स्‍कूल पहुंचते सबक जिए जाते एसी बिल्डिंग के धोखे में वही ज़माना ढूंढ रहा हूं बोझ बने हैं हाथ करोडों, झेले झेल न जाएं बनता हो कुछ काम जहां, कारखाना ढूंढ रहा हूं

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