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Showing posts from October, 2012
हर बात में कहते हैं वो मुझसे कि तुम्हे क्या ? माली चमन को लूट के खाए तो तुम्हे क्या ? सुनवाई हुई पूरी सज़ा बरकरार है - फांसी पे न हम उसको चढ़ाएं तो तुम्हे क्या? ज़म्हूरियत में चुनना सिर्फ सबका फ़र्ज़ है - रहज़न उम्मीदवार है तो इससे तुम्हे क्या ? दर दर पे सिर झुकाके है सेवा का व्रत लिया- फिर पांच साल हाथ न आयें तो तुम्हे क्या ? मेरे ही बुजुर्गों ने बसाई थीं बस्तियाँ - मैं आग अगर उनको लगाऊं तो तुम्हे क्या ? इस देश का पैसा तो विदेशों में जमा है - इस देश में वापस नहीं लाएं तो तुम्हे क्या ? यह माना पातिव्रत्य तेरा संस्कार है - तेरा पति मेरे साथ सो जाए तो तुम्हे क्या ? मेरा वज़ीरेआज़म तो ईमानदार है- आरोपों की न जांच कराए तो तुम्हे क्या ? विनय ओझा 'स्नेहिल'

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