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ajnat rachnakar visheshank

समकालीन अभिव्यक्ति  का अज्ञात रचनाकार विशेषांक  समकालीन अभिव्यक्ति के गौरवशाली  दस वर्ष  पूर्ण होने पर                      एक महत्त्वाकांक्षी योजना अज्ञात रचनाकार विशेषांक      एक दुर्लभ एवं खोजपरक अंक                     शीघ्र प्रकाश्य  अज्ञात रचनाकार के मानदंडः ऐसे रचनाकार जो परिस्थितिवश  प्रकाशन  जगत से दूर रह गए। ऐसे रचनाकार जो कभी-कभी और कम लिखे। ऐसे रचनाकार जो स्वांतःसुखाय लिखते रहे। ऐसे गंभीर पाठक जो स्तरीय लेखन में सक्षम होने के बावजूद नहीं लिखते। ऐसी रचनाओं के लेखक जो अज्ञात ही रह गए, रचनाएं लोकप्रिय हुईं। रचनाकार कृपया ध्यान दें: रचनाएं सर्वथा अप्रकाशित /दुर्लभ श्रेणी की होनी चाहिए। रचना किसी भी विधा में हो सकती है किंतु विषयवस्तु साहित्यिक/सांस्कृतिक ही होनी चाहिए। दलगत राजनीति और सनसनीखेज मुद्‌दों पर आधारित रचनाएं स्वीकार्य नहीं हैं। रचनाएं मार्च,2012 तक संपादकीय कार्यालय में प्राप्त हो जानी चाहिए। यदि प्रेषित  सामग्री के रचनाकार का नाम अज्ञात है तो प्रस्तोता का नाम दिया जाएगा। ऐसी   स्थिति में कृपया रचनाप्राप्ति का स्रोत भी बता

Kanya Kumari mein Suryast

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                                         कन्याकुमारी में सूर्यास्त                                                                           -हरिशंकर राढ़ी दोपहर बाद हमने बाकी बची जगहों को देखने का कार्यक्रम बनाया। कन्याकुमारी स्थल जिस देवी के नाम पर जाना जाता है, उस अधिष्ठात्री  देवी कन्याकुमारी का एक विशाल  मंदिर यहाँ बना हुआ है। स्थल का नाम कन्याकुमारी पड़ने के पीछे एक पौराणिक कथा बताई जाती है। कहा जाता है कि कन्याकुमारी पार्वती का ही एक दूसरा रूप है। किसी जन्म में देवी पार्वती ने एक कन्या के रूप में भगवान शिव को पति के रूप में पाने हेतु घोर तपस्या की थी। उस समय बाणासुर का आतंक चहुँओर फैला हुआ था और वह देवताओं के लिए संकट बना हुआ था। ब्रह्मा से प्राप्त वरदान के कारण वह अजेय था और उसका वध किसी कुँआरी कन्या के ही हाथों हो सकता था। यह भी स्पष्ट  ही था कि उस बलशाली  असुर को आदिशक्ति  देवी पार्वती के अतिरिक्त कोई अन्य कुंवारी कन्या नहीं कर सकती थी। इधर पार्वती के तप से भगवान शिव प्रसन्न हो चुके थे और विवाह में अधिक देर नहीं थी। एतदर्थ नारद मुनि को बहुत चिन्ता हुई और उन्होंने देवी पा

Vivekanand Rock Memorial

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                                      विवेकानन्द रॉक मेमोरिअल                                                                  -हरिशंकर राढ़ी       कन्याकुमारी के मुख्य  भूखण्ड से लगभग पाँच सौ मीटर की दूरी पर सागर में स्थित विवेकानन्द स्मारक यहाँ का एक महत्त्वपूर्ण आकर्षण  है। इस स्मारक पर गए बिना कन्याकुमारी की यात्रा व्यर्थ ही मानी जाएगी। यहाँ पहुँचने के लिए तमिलनाडु राज्य के अधीनस्थ पूम्पूहार शिपिंग  कारपोरेशन फेरी सर्विस (नाव सेवा) चलाता है। सेवा प्रातः शुरू होती  है और इसका अन्तिम चक्कर सायं चार बजे लगता है। इसके बाद चट्टान पर जाने हेतु सेवा बंद हो जाती है, उधर से आने के लिए उपलब्ध रहती है।         विवकानन्द रॉक मेमोरिअल दरअसल लगभग उस विन्दु के पास स्थित है जहाँ तीनों सागर मिलते हुए दिखाई देते हैं। वैसे यह बंगाल की खाड़ी में मोती के समान उभरी जुड वाँ चट्टानों में से एक पर स्थित छोटा सा स्मारक है जिस पर कभी भारत के आध्यात्मिक, दार्शनिक , बौद्धिक गुरु एवं आदर्श युवा  संत स्वामी विवेकानन्द ने ध्यान साधना की थी। इस चट्टान को स्मारक का स्वरूप सन १९७० में दिया गया। स्मारक का

Kanyakumari Mein

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                                        कन्या कुमारी में सूर्योदय                                                                                                                                                                       -हरिशंकर राढ़ी                     होटल की बॉलकनी में बैठा रात देर तक शहर  का दृश्य  देखने का आनन्द लेता रहा था। बॉलकनी के ठीक सामने लोकल बस स्टैण्ड था और मैं यह देखकर आश्चर्यमिश्रित सुख लेता रहा कि रात के ग्यारह बजे भी युवतियाँ निश्चिन्त  भाव से अपने गन्तव्य के लिए साधन का इन्तजार कर रही हैं। उनके चेहरे पर न कोई भय न घबराहट! निःसन्देह यह केवल प्रशासन  का परिणाम नहीं होगा। प्रशासन  तो कमोबेश  हर जगह ही है। हम तो देश  की राजधानी दिल्ली में रहते हैं जहाँ समूचे देश  को चलाने के लिए नियम-कानून बनते हैं। बनाने वाले भी यहीं रहते हैं और उनका पालन कराने वाले भी । किन्तु, जब तक पालन करने वाले नहीं होंगे, पालन कराने वाले चाहकर भी कुछ विशेष  नहीं कर सकते हैं। केरल में इसका उल्टा है। कानून बनाने वाले और उनका पालन कराने वाले हों या न, पालन करने वाले खूब हैं। को

Kanyakumari Ke Liye

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                                               कन्या कुमारी की ओर                                                                                                                                                                    -हरिशंकर  राढ़ी        योजनानुसार हमलोग प्रातः छः बजे तक रामेश्वरम बस स्टेशन  पहुँच चुके थे। वहाँ मालूम किया तो कन्याकुमारी के लिए सात बजे बस नियत  थी और वहीं खड़ी थी। बुकिंग खिडकी पर एक सभ्य तमिल उपस्थित था और हमारे साथ बहुत मैत्रीपूर्ण ढंग से बात कर रहा था। उसके अनुसार बस समयानुसार खुल जाएगी और यथासमय कन्याकुमारी पहुँचा देगी। यूँ तो बस बाहर से पुरानी ही लग रही थी परन्तु अन्दर से ठीक-ठाक थी। विशेष  बात यह थी कि यह बस दो गुणा दो थी और पुशबैक  थी, फिर भी प्रति व्यक्ति किराया एक सौ पचास रुपए मात्र! मैंने पहले भी कहा है कि तमिलनाडु सरकार की बसों में किराया काफी कम है। रामेश्वरम से कन्याकुमारी की कुल दूरी तीन सौ किलोमीटर है और यात्रा में लगभग आठ -नौ घंटे लग जाते हैं। कुल मिलाकर मामला बहुत अच्छा था। चाय वगैरह पी रहे थे तब तक एक दूसरी बस आ गई जिसके बोर्ड पर

रामेश्वरम में

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हरिशंकर राढ़ी दोपहर बाद का समय हमने घूमने के लिए सुरक्षित रखा था और समयानुसार ऑटोरिक्शा  से भ्रमण शुरू  भी कर दिया। पिछले वृत्तांत में गंधमादन तक का वर्णन मैंने कर भी दिया था। गंधमादन के बाद रामेश्वरम द्वीप पर जो कुछ खास दर्शनीय  है उसमें लक्ष्मण तीर्थ और सीताकुंड प्रमुख हैं। सौन्दर्य या भव्यता की दृष्टि  से इसमें कुछ खास नहीं है। इनका पौराणिक महत्त्व अवश्य  है । कहा जाता है कि रावण का वध करने के पश्चात्  जब श्रीराम अयोध्या वापस लौट रहे थे तो उन्होंने सीता जी को रामेश्वर  ज्योतिर्लिंग के दर्शन  के लिए, सेतु को दिखाने के लिए और अपने आराध्य भगवान शिव  के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए पुष्पक  विमान को इस द्वीप पर उतारा था और भगवान शिव की पूजा की थी। यहाँ पर श्रीराम,सीताजी और लक्ष्मणजी ने पूजा के लिए विशेष  कुंड बनाए और उसके जल से अभिषेक  किया । इन्हीं कुंडों का नाम रामतीर्थ, सीताकुंड और लक्ष्मण तीर्थ है । हाँ,  यहाँ सफाई  और व्यवस्था नहीं मिलती और यह देखकर दुख अवश्य  होता है। स्थानीय दर्शनों  में हनुमान मंदिर में (जो कि बहुत प्रसिद्ध और विशाल  नहीं है) तैरते पत्थरों के दर्शन करना

Beyond popular outrage

मैं मानता हूं कि टीम अन्ना ने भ्रष्टाचार रोकने के लिए एक सार्थक शुरुआत की है. मैं अन्ना के मुद्दे और आंदोलन दोनों के पक्ष में रहा हूं और आगे भी रहूंगा. मेरे कुछ मित्र इस विषय पर ज़रा हटकर सोचते हैं. एक आदर्श लोकतंत्र की यह शर्त है कि वहां जितना महत्व समर्थन के लिए है, विरोध के प्रति उतना ही सम्मान होना चाहिए. हमारे विरुद्ध सोचने वालों के भी अपने तर्क हैं और अपनी चिंताएं हैं. वरिष्ठ पत्रकार विशाल दुग्गल इस मुद्दे और आंदोलन के विरुद्ध तो नहीं हैं, लेकिन अलग ढंग से सोचते हैं. अब जब इस पर हल्ले का माहौल बीत चुका है, मेरा मानना है कि अगर हम वाक़ई भ्रष्टाचार मिटाना चाहते हैं तो इन मुद्दों पर भी सोचा जाना चाहिए. श्री दुग्गल का पूरा लेख आपके विचार के लिए: इष्ट देव सांकृत्यायन Corruption today has seeped into the vitals of India’s body politic, acquiring frighteningly menacing proportions to the extent that any fresh disclosure of a scam has ceased to shock the people any more. What has accentuated the citizens’ growing disenchantment with the system is the connivance of top functionaries -- h

Samarthan ka Sailaab

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समर्थन का सैलाब                     -हरिशंकर राढ़ी अनुमान था कि होगा ऐसा ही।  देशवासियों को एक इंजन मिल गया है और वे अब किसी भी ब्रेक से रुकने वाले नहीं। आज तो जैसे दिल्ली के सारे रास्ते रामलीला मैदान की ओर जाने के लिए ही हों , जैसे दिल्ली मेट्रो केवल अन्ना समर्थकों के लिए ही चल रही हो और हर व्यक्ति के पास जैसे एक ही काम हो- रामलीला मैदान पहुँचना और अन्ना के बहाने अपनी खुद की लड़ाई को लड़ना । साकेत मेट्रो स्टेशन  पर जो ट्रेन बिलकुल खाली आई थी वह एम्स जाते-जाते भर गई और सिर्फ भ्रष्टाचार  विरोधी बैनरों और नारों से। नई दिल्ली स्टेशन से बाहर निकलता हुआ हुजूम आज परसों की तुलना में कई गुना बड़ा था। सामान्य प्रवेश द्वार पर ही हजारों  की भीड़ केवल प्रवेश की प्रतीक्षा में पंक्तिबद्ध थी। किसी भी चेहरे पर कोई शिकन  नहीं, कोई शिकायत  नहीं। ऐसा शांतिपूर्ण प्रदर्शन  मैंने तो अब तक नहीं देखा था। सच तो यह है कि प्रदर्शनों  से अपना कुछ विशेष  लेना -देना नहीं। राजनैतिक पार्टियों का प्रदर्शन  भंड़ैती से ज्यादा कुछ होता नहीं, मंहगाई  और बिजली पानी के लिए होने वाले प्रदर्शन  जमूरे के खेल से बेहतर न

Azadi ki doosari ladaaie

आज़ादी की दूसरी लड़ाई    ---हरिशंकर राढ़ी नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन से बाहर निकलते ही एक आदमी ने पूछा-‘‘ भाई साहब, ये रामलीला मैदान किधर है ?’’ मन में कुछ प्रसन्नता सी हुई और उसे रास्ता बताया- ‘‘ बस इधर सामने से निकल जाइए, ये रहा रामलीला मैदान! वैसे आज तो सभी रास्ते रामलीला मैदान ही जा रहे हैं। किसी भी हुजूम को पकड़ लीजिए, रामलीला मैदान पहुँच जाएंगे। इतने दिनों बाद पहली बार तो असली रामलीला हो रही है वहाँ ! वरना रावणलीला से किसे फुरसत मिलती है यहाँ ? वैसे मैं भी वहीं चल रहा हूँ, अगर डर न लग रहा हो तो मेरे साथ चले चलिए। ’’श्रीमान जी मुस्कराए- ‘‘ डर से बचने के लिए ही तो यहाँ आया हूँ। अगर आज भी हम डर गए तो डर से फिर कभी बच नहीं पाएंगे। जहाँ देश  इतने संकट से गुजर रहा हो, वहाँ भी डरने के लिए  बचता क्या है? और डर तो नहीं रहा है एक सत्तर पार का बुजुर्ग जिसका अपना कोई रक्तसंबन्धी ही नहीं है, जो पूरे देश को अपना संबन्धी समझ बैठा है तो मैं क्यों डरूँ?’’ गेट से बाहर निकलकर कमला मार्किट वाली सड़क पर पहुँचा तो जुलूस ही जुलूस । मै भी एक अनजाने जुलूस का हिस्सा बन गया । शायद  पहली बार भीड़तंत्र

अतीत का आध्यात्मिक सफ़र-3 (ओरछा)

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इष्ट देव सांकृत्यायन   रानी महल के झरोखे से चतुर्भुज मंदिर का दर्शन  व्यवस्था और अव्यवस्था कालिदास का मेघदूत हम पर मेहरबान था। पूरे रास्ते मूसलाधार बारिश का मज़ा लेते दिन के साढ़े दस बजे हम ओरछा पहुंच गए थे। पर्यटन स्थल होने के नाते यह एक व्यवस्थित कस्बा है। टैक्सी स्टैंड के पास ही बाहर से आने वाले निजी वाहनों के लिए भी अलग से व्यवस्थित पार्किंग है। सड़क के दाईं ओर मंदिरों का समूह है और बाईं ओर महलों व अन्य पुरातात्विक भवनों का। मध्यकालीन स्थापत्य कला के जैसे नमूने यहां चारों तरफ़ बिखरे पड़े हैं, कहीं और मिलना मुश्किल है। सबसे पहले हम रामराजा मंदिर के दर्शन के लिए ही गए। एक बड़े परिसर में मौजूद यह मंदिर का$फी बड़ा और अत्यंत व्यवस्थित है। अनुशासन इस मंदिर का भी प्रशंसनीय है। कैमरा और मोबाइल लेकर जाना यहां भी मना है। दर्शन के बाद हम बाहर निकले और बगल में ही मौजूद एक और स्थापत्य के बारे में मालूम किया तो पता चला कि यह चतुर्भुज मंदिर है। तय हुआ कि इसका भी दर्शन करते ही चलें। यह वास्तव में पुरातत्व महत्व का भव्य मंदिर है। मंदिर के चारों तर$फ सुंदर झरोखे बने हैं और दीवारों पर आले

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