जज रमेश पंत और शराब चोर गोल्डी के सीन

अख़बार की दुनिया से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और फिर सिनेमा तक तक़दीर की आजमाइश करते चले जाने वाले आलोक नंदन को सिनेमा के व्याकरण की अच्छी समझ है. हिंदी में सही पूछिए तो किसी भी क्षेत्र में स्क्रिप्टिंग पर औपचारिक रूप से बहुत ढंग का काम नहीं हुआ है. साहित्य से लेकर पत्रकारिता और सिनेमा तक यह कमी महसूस होती है. हालांकि यही हिंदी की दुनिया की बहुत बड़ी ख़ूबी भी है. एक लड़की-एक लड़के और एंग्री यंगमैन वाले फार्मूलेबाजी के दौर से निकल चुके हिन्दी सिनेमा में यह कमी ज़्यादा शिद्दत से महसूस की जाने लगी है. इसी के मद्देनज़र आलोक नंदन ने पिछले शुक्रवार से यह कोशिश शुरू की है. यह कहानी या स्क्रिप्ट होने की दृष्टि से उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना कि उसके व्याकरण के नज़रिये से. पाठकों से हमारा अनुरोध है कि इसे इसी नज़रिये से लिया भी जाना चाहिए और यदि कहीं कोई शंका हो या कोई सुझाव हो तो उसे निस्संकोच रखें. हर संशय के निराकरण का वादा तो हम नहीं कर सकते, पर कोशिश ज़रूर करेंगे और सुझावों का स्वागत तो है ही.


(फिल्म स्क्रिप्ट राब्स का दूसरा भाग)
आलोक नंदन
अब जज पंत के इस डायलाग को देखिये, एक बड़े से आइने के सामने खड़ा होकर वह बोल रहा है, “जिंदगी में कभी शादी मत करना...तब तक मत करना, जब तक तुम्हें यह यकीन न हो जाये तुमने वो सब कुछ पा लिया जो तुम्हें पाना चाहिये था, शादी करने के बाद तुम किसी लड़की के कदमों में अपने आप को उल्लू और गधे की तरह पाओगे...शादी करना लेकिन बुढ़े होने के बाद...जब तुम किसी काम के नहीं रहो... ” यह डायलाग लियो तोलोस्तोव की पुस्तक युद्ध और शांति में अंद्रेई बोलोकोन्सकी अपने दोस्त प्येर से बोलता है। जब मैं चिंतन के स्तर पर जज पंत के चरित्र का विकास कर रहा था तब मुझे लगा था यह संवाद जज पंत की मानसिकता को बेहतर तरीके से दर्शा सकता है। युद्ध और शांति पुस्तक में मैंने इस संवाद को एक पेंसिल से अंडरलाइन कर दिया था, और बाद में स्क्रीप्ट लेखन के दौरान मैंने इसका इस्तेमाल कर लिया। जब कोई चरित्र खुद से बात करते हुये किसी चीज को खोलता है तो उसे तकनीकी भाषा में सोलीलाकी (एकल संवाद या आत्मसंवाद) कहते हैं। रंगमंच की दुनिया में इसका जबरदस्त इस्तेमाल हुया है, और फिल्मों में भी। तकनीकी तौर पर अंद्रेइ के संवाद को यहां मैंने जज पंत के सोलीलाकी में तब्दील कर दिया है।
इस किश्त में जज पंत और शराब चोर गोल्डी के सीन हैं। जज पंत और गोल्डी के बीच जो कुछ हो रहा है उसका आनंद उठाइये।

Scene 3
Characters…Pant and wine thief Goldi
Ent/ night/ Pant’bedroom.
(Pant enters into his bed room and goes to an almira.He looks himself in the mirror from diffrent angles and try some different style and feel himself young, even more younger than his age.He is reciting an English poem)
Pant
(recites a poem) I have a rose, a white, white rose,
‘T was given me long ago,
When the Winds had fallen to silence,
And the stars were dim and low,
It lies in and old book faded,
Between the pages white,
But the ages cannot dim the dream
It brings to me tonight!

(looking to the mirror )
Marriage, disgusting ….( he stands like a warrior and says to himself)..Jindagi me kabhi shadi mat karana …tab-tak mat karana jab-tak tumhe yeh yakin na ho jaye ki tumne woh sabkuch pa liya jo tum pana chahate the…Shadi karane ke bad tum kisi ladaki ke kadamo me apane aap ko ulu aur gadhe ki tarah paoge…Shadi karana, …lekin bure hone ke bad…jab tum kisi kam ke na raho….
(Some sounds comes from the almira. Pant feels that someone is inside the almira. Carefully he comes to his bed and pick out a revolver under a pillow and comes back to the almira. He looks himself to the mirror )

Pant
(In harsh voice) Kaun hai almira ke andar?
(there is no word)
Mere hath me revolver hai bahar aate ho ya goli chalaun?
(The almira opens and Goldi comes out. There are two branded bottles of a classic wine in his both hands. His hands with the bottles are over his head. All the items of his body are branded and costly, shirt, pant,watch, chain everything that he has.)

(Note for the producer……In this scene a special brand of wine can be used professionally. In one more scene this special brand is used. So please be careful)
Goldi
Please don’t shoot.
Pant
Kaun ho tum?

Goldi
(recognizing Pant) Oh, Judge Pant, it is you? Mujhe nahi pata tha ki main ek judge ke ghar me ghusa hun.
( He looks to his right hand’s bottle)

kaya main apane hath niche kar lun?
Pant
Tum mujhe janate ho?
Goldi
Lagata hai aapane mujhe pahchana nahi…main Goldi hun…Goldi chor..char mahina pahle car chori ke ek mamle me aapane hi to mujhe jamanat di thi…main hath niche kar loo? (with full confidence he downs his both hands).. mujhe pura yakin hai ki ek judge ek nihate adami per kabhi goli nahi chalayega…kisi sanik adhikari ke hathe chara hota to yeh risk nahi leta.
Pant
Yahan kaya karane aaye the?
Goldi
(carelessly) obviously chori.
Pant
Ek judge ke ghar me ghuskar usi ke samane tum Kabul kar rahe ho ki yaha chori karane aaye the?
Goldi
Judge sahab, yeh aapaka court nahi bedroom hai…is waqt aap mujhe police ke hawale kar sakate hai….phir police walon ki nind kharab hogi, kuch sarakari kagaj kale kiye jayenge ..gawahi aur sunwai hogi…mujh per dafa kaya lagega?…chori ka,…kuch din jail me rah kar chut jaunga.
Pant

(Having his revolver down)
Adami samjhdar ho, phir chori kayo karate ho?
Goldi
Apani to life ki simple si philosophy hai…bloodless economical crime…khun-kharaba mujhe pasand nahi…samudra se do char balti pani nikalane se us per koi asar nahi parata…aath se char ki duty apane se nahi hogi.
Pant
Shadi shuda ho?
Goldi
(with laugh) Jawani me shadi murkh log karate hai….kisi ek ka hone se acha hai sab ko apana bana lo.
Pant
Mahine me kitana kama lete ho?
Goldi

Yehi koi tin-char lakh.
Pant
(sitting on his bed) aur kharch kitana kitana karate ho?
Goldi
Sare kharch ho jate hai….bahut sari girl friends hai…unako gift jo dena parata hai..acha ab mujhe ijajat dijiye….ye botal mai le ja sakata hun ?
Pant

Chaho to aur le lo.

Goldi
Thank u, aaj rat ke liye itana hi kaphi hai.
(Goldi goes to a open window)
Pant
(denoting to the door) darwaja udhar hai.
Goldi
Aap bhul rahe hai main ek chor hun.
(Goldi goes out from the window. Pant fells down on the bed and puts the light off using the bed switch)


cut to

जारी......(अगला अंक अगले शुक्रवार को)
नोट- स्क्रीप्ट लेखन तकनीक को समझने में मुझे काफी मश्कत करनी पड़ी थी, मेरी पूरी कोशिश है कि इस तकनीक को मैं बहुत ही सहज तरीके से रखूं...पिछले किश्त में जिस तरह टिप्पणियां आई हैं उससे मेरे विश्वास में इजाफा हुआ है। किसी भी फिल्म का शीर्षक बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इस फिल्म का नाम राब्स ही क्यों रखा, इस पर आगे चर्चा करूंगा....फिलहाल हिंट्स के तौर पर बता दूं कि यह नाम 1789 ई के फ्रांसीसी क्रांति के समय जेकोबिन क्लब के नेता, जो पहले जज था, राब्सपीयर का संक्षेपीकरण है। क्रिएशन के दौरान आपके पास क्रिएशन की प्रक्रिया पर सोंचने का समय नहीं होता, या फिर यूं कहा जाये कि क्रिएशन की प्रक्रिया आपको क्रिएशन से संबंधित तत्वों के अलावा और कुछ सोचने का समय नहीं देती है। स्क्रीप्ट तकनीत को सहजता से रखने के दौरान मेरी यह पूरी कोशिश होगी कि उस प्रक्रिया को भी टटोलू जिससे गुजर कर इस स्क्रीप्ट को मैंने लिखा है।


Comments

  1. आज ही रास्ते में पहली स्क्रिप्ट को पढता आया हूँ... इंटर कट सीखा और कुछ और तरीका भी... शुक्रिया...
    इस पोस्ट की प्रिंट आउट भी ले जा रहा हूँ सर... कल कुछ लिखूंगा इसपर.. इस पोस्ट का इंतज़ार था...

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  2. इष्टदेव जी,आपने इंट्रो लिखकर चीजों को सही तरीके से प्रस्तुत कर दिया है...इसके लिए धन्यवाद...मुझे अच्छी तरह से याद है कि ब्लाग की दुनिया में मुझे आप ही लेकर आए थे...बातों -बातों में आपने मुझे इयता की सदस्यता दिला दी थी...खैर इस पर कभी विस्तार से लिखूंगा...राब्स का यह दूसरा किश्त है, पहले किश्त को पसंद किया गया..अब देखिये न सागर जी लिख रहे हैं कि इस पोस्ट का उन्हें इंतजार था...तो अब मुझे लग रहा है कि हम सार्थक प्रयास कर रहे हैं...

    सागर जी, तो आपको भी रास्ते में पढ़ने की आदत है...मेरी भी है...तो यह एक चीज हम दोनों में कामन है...आप जरूर लिखिये इस पोस्ट पर...तकनीक पर लिखिये...चरित्रों पर लिखिये...संवादों पर लिखिये...चरित्रों के एक्ट पर लिखिये...जो मन में आये सो लिखिये...संवाद की प्रक्रिया से ही सब कुछ खुलता चला जाएगा...प्लेटो की एक पुस्तक है, रिपब्लिक...यह संवाद शैली में है...नेट ने संवाद की असीम संभावनाओं को संभव बनाया है...तो फिर क्यों ना इसका लाभ उठाया जाये..
    आपका आलोक नंदन

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  3. इस प्रयोग के लिए साधुवाद ......असली कमेन्ट अभी नहीं करना चौंगा क्यूकी फौरी कमेन्ट इस पोस्ट पर करने की मेरी इच्छा नहीं है ...शाम को या रात को फिर आता हूं.....

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  4. डाक्टर साहब...धन्यवाद...जब आप कामेंट्स करने के लिए थोड़ा सा ठहर गये तो मुझे यकीन है आप इससे संबंधित कई परतों को टच करेंगे...अब मुझे भी मजा आने लगा है...

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  5. अच्छी जानकारी। धन्यवाद।

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  6. सिर्फ सागर सर, सागर जी नहीं... प्लीज़

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  7. मनोज जी धन्यवाद...

    अब सागर ही कहूंगा...सिर्फ सागर...लेकिन सागर तो बहुत गहरा होता.

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  8. आर्शिया जी, फिलहाल जिस फारमेट में हिन्दी फिल्मों की स्क्रीप लिखने का चलन है मैं उसी फारमेट का पालन कर रहा हूं...और मुझे लगता है कि यह व्यवहारिक भी है...कौन सा स्क्रीप्ट किस प्रोडक्शन हाउस में किस डायरेक्टर के पास जाएगा दावे के साथ नहीं कहा जा सकता है...शायद इसलिये व्यवहारिक स्तर पर फिल्म को इसी तरीके से लिखा जाता है...यानि दृश्य का वर्णन और चरित्रों का एक्ट अंग्रेजी में और डायलाग रोमन हिन्दी में...वैसे आप ठीक कह रही हैं हिन्दी में पढ़ने में शायद ज्यादा मजा आता, लेकिन ऐसा करने से व्यवसायिक स्तर पर स्क्रीप्ट लेखन का जो फारमेट चल रहा है उससे मैं भटक जाता...और इस मामले में हिन्दी के प्रति निष्ठा से संचालित होकर न तो मैं खुद भटकना चाहता हूं न ही अपने पाठकों को...मेरा उद्देश्य पेशेवर स्क्रीप्ट राइटिंग के तौर तरीकों को सामने रखना है, जो बाजार में बिके..और पर्दे पर दिखे....यह सच है कि किसी समय लोग उर्दू में स्क्रीप्ट राइटिंग करते थे और डायलाग भी उर्दू में लिखते थे ...फिर उनका हिन्दी में तर्जुमा किया जाता था..उस दौर के स्क्रीप्ट लेखक दूसरी मिट्टी के बने हुये थे...लेकिन अब दौर बदल गया है...और मैं यही चाहता हूं कि जो स्क्रीप्ट लेखन में अपना कैरियर बनाने की इच्छा रखते हैं वो भी इस बदलते दौर के फारमेट को समझे और उसी के अनुसार अपने आप को तैयार करे। एक स्क्रीप्ट का अंतिम उद्देश्य होता है उसे पर्दे पर दिखाना...और फिल्म हिन्दी या अंग्रेजी यह उस फिल्म के संवाद से पता चलता है न कि स्क्रीप्ट से...अब संवादों को रोमन हिन्दी में लिखने के अपने कारण है...किसी भी फिल्म यूनिट में आने वाले कलाकार विभिन्न क्षेत्रों के होते हैं...ऐसे में किसी गैर हिन्दी कलाकार के हाथ में यदि हिन्दी वाली स्क्रीप्ट रख दी जाये तो निसंदेह उस कलाकार को परेशानी होगी...और सीन को समझने और डायलाग को पकड़ने में वह अधिक टाइम लेगा...कैमरा आन होने के बाद वह अधिक फूटेज खाएगा...इस अनावश्यक परेशानी और खर्चे को टालने के लिए ही इस तरह के स्क्रीप्ट का इस्तेमाल किया जाता है...पहले मैंने सोचा था कि इस स्क्रीप्ट को हिन्दी में पोस्ट करूं, लेकिन मुझे लगा कि व्यवहारिक नजरिये से यह उचित नहीं होगा. प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद..
    सादर आलोक नंदन

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  9. अर्शिया जी की बात से मैं भी रजामंदी रखता था.. किन्तु मेरे लिए जितना मिल रहा था वोही बहुत था... अब खुद आपने निराकरण भी कर दिया... और जब ध्येय इतना साफ़ है तो जय हो .... आपकी बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय नीति ने भी प्रभावित किया...

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  10. वाह आलोक जी..... बढ़िया जानकारी... सिचूएशन गीत की दरकार हो तो याद करें.... रोमन में भी और रो मन में भी.... खैर... जारी रखें मज़ा आ रहा है...

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  11. कोलेज टाइम में हम यार दोस्तों ने मिल जुल कर के कई स्क्रिप्ट लिखी .जो सीन दर सीन मोडिफाय हो जाती थी ...ह्यूमर .एक्टर की एंट्री .पोजीशन ....उसको बोडी लेंग्वेज ..कांटीन्यूटी जारी रखने की कवायद ....क्या दिमाग में ..खाका पूरा फिट रखा है पहले से ..जैसे एंडिंग....
    क्या डाइलोग पर ओर मेहनत की जरुरत नहीं लगती...?थोड़े ओर इंटेंस हो.तो.....

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  12. डाक्टर साहब...यह स्क्रीप्ट तीन साल पहले लिखा गया था...फिर कई जगहों पर घूमा भी...फिर काफी दिन तक पड़ा रहा...मैं भी अन्य कार्यों में व्यस्त हो गया...फिर अचानक पिछले सप्ताह एक दोस्त ने कहा कि उसे एक स्क्रीप्ट का फारमेट चाहिये...और घर में आकर खोजने पर मुझे यह मिल गया...जब उस दोस्त की डिमांग पर विचार किया तो मुझे लगा कि क्यों ने इसे ब्लाग पर ही पोस्ट कर दूं...फिर इष्टदेव जी से बात करने के बाद शुरु हो गया....इस पर दुबारा मेहनत करने के बजाय इसे टुकड़ों में जस का तस रख रहा हूं...अब आपने डायलाग को और इंटेंस बनाने की बात कही है...जब तक फिल्म पर्दे पर उतर नहीं जाती तब तक उसमें उसे इंटेंस बनाने की पूरी गुंजाईश होती है...एक बात और इस स्क्रीप्ट को लिखते समय थोड़ा बहुत रंगमंच का भी हैंगओवर मेरे दिमाग पर था...हो सकता है डायलोग में उसका असर हो...चूंकि इस स्क्रीप्ट को लिखते समय मैं बिल्कुल अकेला था..यार दोस्तों की टीम साथ में नहीं थी...तीन चार लोग जब एक स्क्रीप्ट पर काम करते हैं तो कभी कभी तो सहजता से सीन और डायलाग के साथ-साथ पूरा ट्रीटमेंट सामने आ जाता है..और कभी कभी पूरा मामला गुड़गोबर हो जाता है...मुझे याद रहा है चेखोव का कोई नाटक था...उस नाटक में एक पत्नी अपने पति से बेवफाई करती है...जब पति को पता चलता है तो अंतिम सीन अंतिम सीन में वह पत्नी को बहुत भला बुरा कहता है..तमाम तरह के नैतिक उपदेश देता है...और फिर उसे क्षमा कर देता है..अंतिम सीन में पति का डायलोग बहुत लंबा हो गया था...उस नाटक का रिहर्सल शुरु हो गया था..चेखोव एक दिन रिहर्सल देखने पहुंच गया..अंतिम सीन का रिहर्सल देखने के बाद चुपचाप घर लौटा और फिर लंबे चिंतन प्रक्रिया के बाद अंतिम अंतिम सीन में पति के पूरा डायलाग काट दिये..और उसके स्थान पर सिर्फ इतना लिखा...मैं तुम्हे माफ करता हूं क्योंकि तुम मेरी पत्नी हो...सिर्फ एक वाक्य में वह पत्नी की महत्ता को पूरी तरह से स्थापित कर देता है...शायद आप डायलाग में इसी इंटेसिटी की बात कर रहे हैं....फिलहाल इसको दुबारा लिखने की इच्छा नहीं है, लेकिन जब दुबारा लिखुंगा तो निसंदेह देखूंगा कि डायलाग कहां कमजोर पड़ रहे हैं...और उन्हें कैसे इंटेंस बनाया जाता है...आपके कामेंटस पाठकों को यह तो पता चलेगा ही कि डायलाग को कैसे तौला जाता है...ह्यूमर, एक्टर की एंट्री..पोजिशन...उसका बडी लैंग्वेज...और कंटीन्यूटी...वाकई में इस पर खास ध्यान देने की जरूरत होती है...आपने इन तत्वों को सामने लाकर कैनवास को और खोल दिया है...साथ ही बताता चलूं कि इस फिल्म में ह्यूमर पर खासा ध्यान दिया गया है....इसको लिखने में करीब तीन महीने लगे थे..लेकिन इस पर सोंच लंबे समय से रहा था...बहुत सारी चीजें स्पष्ट थी लेकिन बहुत सारी चीजें अस्पष्ट भी थी..मसलन जज पंत के चरित्र के मनोविज्ञान को लेकर दिमाग साफ था...लेकिन उसके मूवमेंट्स को लेकर धुंध बना हुआ था..मेरी पूरी कोशिश होगी इससे संबंधित सारी बातों को एक बार टटोलूं...कभी कभी खुद को आब्जेक्ट के रूप में रखकर टटोलना अच्छा होता है..मुझे लगता है कि खुद से सीखने का सबसे अच्छा तरीका यही है...खैर इतना तो पता चल रहा है कि कालेज में आपने इस फन पर भी हाथ आजमाया था...उम्मीद है हम संवाद में बने रहेंगे..

    योगेन्द्र जी...आगे इस स्क्रीप्ट में आपको गीत के सिचुएशन मिलेंगे...फिर आपका फन देखने का पूरा मौका मिलेगा...फिलहाल तो मजा लिजिये...फिल्म शुरु है...
    सादर आलोक नंदन

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  13. सर, मुझे लगता है आप सही जा रहे है... क्योंकि संवाद को प्रभावी बनाना तो हमारे हाथ में है.. और यह बिलाशक आवश्यक निर्देश है या होगा... यह बस आप निर्देश दे देंगे तो काफी होगा... मुख्य बात तो अनुसाशन की है... टेक्निक सीखने की है... चीजें और किरदार इन्सर्ट करने की है... आप सिर्फ एक ड्राफ्ट दें... और आसपास घुमती हुई चीजों के बारे में बताते चलें... हाँ स्क्रिप्ट में की गयी हर चालाकी को अलग से (...) में जरूर बताएं... कहीं वो मुझ जैसे अकल्मन्द से रह ना जाएँ... किरदार के व्यक्तित्व के बारें में भी बताएं... कहानी में फ्लाश्बैक से कितना गतिरोध आता है ? और क्या केमेरा कैसे कैसे घूमता है इसकी हलकी जानकारी दिया जाये ?

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  14. सागर, कैमरा का मूवमेंट पूरी तरह से निर्देशक का कार्यक्षेत्र है...पेशेवर स्क्रीप्ट राइटर को इससे पूरी तरह से दूर रहना चाहिये, तब तक जब तक कि वह खुद उस फिल्म को डायरेक्ट करने नहीं जा रहा है। नैतिक तौर पर यह एक स्क्रीप्ट राइटर को अधिकार नहीं है कि वह डायरेक्टर को कैमरे का मूवमेंट्स समझाये...अब किस चरित्र या लोकेशन को वह लांग शाट्स में खोलेगा या फिर ऊपर से एंगल लेगा या फिर नीचे से यह बताने की कतई जरूरत नहीं है...ऐसा करके एक स्क्रीप्ट राइटर डायरेक्ट के दिमगा को बांधने की ही कोशिश करेगा...और गलती से यदि डायरेक्टर इगोइस्ट है तो व्यवहारिक तौर पर वह स्क्रीप्ट राइटर की हजामत बना देगा, और उसे पता भी नहीं चलेगा। एक बेहतर स्क्रीप्ट राइटर डायरेक्टर के रिंग से बाहर ही रहता है...और समय आन पर डायरेक्टर की कुर्सी पर तुरंत कब्जा जमाता है...इसके कई उदाहरण है, इनका नाम लेना बेकार है। टायटेनिक फिल्म का पोस्टर सीन आपको याद होगा..जिसमें हीरो हीरोईन को लेकर जहाज के अग्र हिस्से में खड़ा है। वह उड़ते हुये चिड़िया की तरह बांहे फैलाये हुये है और हीरो पीछे से उसे थामे हुये है...उस सीन की स्क्रीप्टिंग सिर्फ चंद वाक्यों में की गई थी। लहजा कुछ इस तरह से था...हीरोईन हीरो की बांहों में अपने आप को पूरी तरह से स्वतंत्र और सुरक्षित महसूस करती है...और हीरो उसे उसे संभालते हुये पूरी तरह से उसमें खोया हुआ है...इस चीज को दिखाने के लिए डायरेक्टर ने उस सीन को डेवल्प किया...कहने का अर्थ यह है कि जो स्क्रीप्ट एक स्क्रीप्ट राइटर लिखता है उसे कैमरे के एंगल से देखने का काम डायरेक्टर का है...तो क्यों न यह काम उसी पर छोड़ दिया जाये...फ्लैश बैक फिल्म लैग्वेज का एक बेहतर तकनीक है...प्रश्न इसके सही इस्तेमाल का है...इसका इस्तेमाल कहानी को और समृद्ध करने के लिए होता है, न कि गतिरोध के लिए....आपको फिल्म शोले याद होगा, उसमें कितनी बार फ्लैश बैक का इस्तेमाल किया गया है...??क्या कहीं कहानी में गतिरोध आती है...??? इसे होमवर्क मानकर इस पर विचार किजीये, फिर दिमाग साफ हो जाएगा...आगे बने रहेंगे
    आपका आलोक नंदन

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  15. बेहतरीन सुझाव... और उससे भी बेहतरीन उदहारण... कैसा संयोग है की शनिवार को मैं इसे बेहतर रूप से समझने के लिए titanic ही देखी... साथ-साथ स्क्रिप्ट भी देख रहा था... जिस सीन का ज़िक्र आपने किया है वो खास तौर से देखा... आपने कैमरा से दूर रख कर काम आसान कर दिया... इससे मुझे स्क्रिप्ट पर एकाग्रता होगी... असली समस्या चरित्र डेवलोप करने में आ रही है... साथ ही एक सीन सोच कर लिखने में बहुत सारा समय लग रहा है सर...

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  16. सागर, टायटेनिक फिल्म पूरी तरह से फ्लैश बैक में है, यह तो आपको पता चल ही गया होगा....जहां तक सीन लिखने की बात है...एक सीन दूसरे सीन से गुथा रहना चाहिये...इस फिल्म को लिखने के दौरान मै बीच पूरी तरह से वैकेंट हो गया था...मेरी समझ में नही आ रहा था कि आगे क्या लिखूं...फिर एक दिन जमकर पीया....और इस पर सोचते हुये इधर उधर घूमने लगा...एक साथ कई सीन दिमाग में कौंध गये, फिर सहजता से इसे लिखता चला गया....जहां पर मैं ठहरा था उस प्वाइंट को मैं रेखांकित करने कीकोशिश करूंगा...जब आप ब्लैंक होते हैं तो उसका तनाव भी अजीब होता है...मुझे याद है कि मै सोंचते सोंचते अचानक गिर पड़ा था, इसे आप क्रिेएटिव ब्लैंकनेस कह सकते हैं...फिर उड़ेल करके पीने लगा...ताकि इस ब्लैंकनेस से बाहर निकल सकूं...उस दिन मैं एकमौल में घूम रहा था, और दिमाग में अचानक सीन खुलने लगे...मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि कभी कभी आपको एक एक सीन सोचने में बहुत समय लग सकता है,लेकिन कभी कभी आपके दिंमगा में दस सीन सीक्वेंस में आ जाएंगे...क्रिएशन से ज्यादा महत्वपूर्ण है क्रिएशन की प्रक्रिया...उस प्रक्रिया को जब आप समझने की कोशिश करेंगे तो आपको लगेगा कि क्रिएशन की प्रक्रिया को संचालित करने का कोई नियम नहीं है...आपने फिल्म बाबी देखी होगी...उसका एक सीन है...ऋषि कपूर डिंपल के घर पर आता है...डिंपल उस वक्त अपने घर में आंटे को गुंथ रही होती है...वह दरवाजा खोलती है और आंटे से सने हुये अपने हाथ से अपने बाल को संवारते हुये ऋषि कपूर की ओर प्रश्नवाचक नजरों से देखती है...अब फिल्म बाबी में इस सीन का निर्माण कैसे हुया...इस सीन के प्रेरक स्रोत कहां है....यह सीन राजकपूर और नर्गिस के रियल लाइफ से लिया गया है...राजकपूर एक बार नर्गिस के घर पर गये थे...और नर्गिस राजकपूर से कुछ इसी अंदाज में मिली थी,जिेसे बाद में राजकपूर ने फिल्म बाबी में एक सीन के रूप में ढाल दिया...किसी भी कथा को स्क्रीप्ट में ढालने के दौरान बेहतर होगा आप अपने अगल बगल के परिवेश को खंगाले...कई घटनायें और चरित्र आप को खुद ब खुद मिल जाएंगे...क्रिएशन नैतिकता और नैतिकता की सीमाओं से परे की चीज है...दिमाग को पूरी तरह से खोलकर काम लिजीये....

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  17. सर, भटकाव दूर करने के लिए शुक्रिया। आपके कथन पर सोच रहा हूं, कुछ हद तक स्थिति साफ भी इुई है। जल्दी ही एक सैंपल भेजूंगा। मैं आनंद तो उठा रहा हूं साथ ही ब्लैंकनैस भी महसूस करता हूं साथ ही ढ़ेर सारा मेहनत आगे जाकर barbaad भी हो जाता है। एक बहुत बेवकूफी भरा सवाल करने की धृश्टता कर रहा हूं। क्या डॉयलॉग खुद लिखना होगा या फिर स्क्रीप्ट के लिए कहानी का ताना-बाना के साथ ऊपरी डॉयलॉग दे दूं और संवाद लेखक उसे अपने लेवल पर डेवलप कर लेगा पर कई बार पूरी तरह कंप्लीट करके देना होता है।

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  18. सागर, यह पूरी तरह से किसी भी कंपनी के साथ आपके एसाइनमेंट पर निर्भर करता है कि आप सिर्फ स्क्रीप्ट लिखेंगे या स्क्रीप्ट और डायलोग दोनों...जब आपको सिर्फ स्क्रीप्ट लिखने का एसाइनमेंट मिलेगा तो आपको डायलाग से कोई मतलब नहीं होगा...यह काम कोई दूसरा कर रहा होगा...पेशेवर अंदाज यही है...हां यदि आप हां अपने सीन को स्पष्ट करते हुये यह बता सकते हैं कि अमुक स्थिति में अमुक कैरेक्टर क्या कह रहा है या क्या कहना चाह रहा है....

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  19. सर आज शुक्रवार है... और मुझे जज पन्त और गोल्डी के स्क्रिप्ट का इंतज़ार है...

    आपका सागर...

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  20. सागर असुविधा के लिए खेद है....आज शाम तक पोस्ट करने की पूरी कोशिश करूंगा...नहीं तो कल तक तो हो ही जाएगा...सौरी फार इट.

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