nijikaran

.......गतांक से आगे
दूसरा महत्त्वपूर्ण निजीकरण शिक्षा का हुआ। सरकारी स्कूलों में कथित रूप से घोर भ्रष्टाचार फैला हुआ था। यद्यपि परिणाम प्रतिशत फेल विद्यार्थियों का ही अधिक होता ,फिर भी कुछ तो उत्तीर्ण हो ही जाते।यही उत्तीर्ण छात्र आगे चलकर बेरोजगारों की संख्या में वृद्धि करते और देश की प्रतिष्ठा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गिरती। न ढंग के कपड़े,न कापी न किताब,न तरीका। आखिर कब तक ढोए सरकार! सारे स्कूल ’पब्लिक स्कूल ’ हो गए।शिक्षा का स्तरोन्नयन हो गया।हाँ,अपवाद स्वरूप् कुछ राजकीय विद्यालय बचे रह गए थे। वस्तुतः इन स्कूलों का परीक्षा परिणाम अन्य विद्यालयों की तुलना में बहुत ऊँचा रह गया था। फलतः शिक्षकों एवं अभिभावकों ने आंदोलन कर दिया। बापू की समाधि पर धरना दे दिया। सरकार को झुकना पड़ा। समझदारी से काम लेना पड़ेगा। उन विद्यालयों के निजीकरण का मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया। उन दिनों सरकार के पास ठंडा बस्ता नामक एक अज्ञात एवं अतिगोपनीय उपकरण हुआ करता था। यह ठंडा बस्ता अलादीन के जादुई चिराग से भी चमत्कारी था। जब भी कोई राष्ट्रीय महत्त्व का मामला होता और सरकार उसे लटकाना चाहती तो उसे ठंडे बस्ते में डाल देती। वह उसी में पड़ा रहता। जब पुनः आवश्यकता होती या आम चुनाव आते, सरकार ठंडे बस्ते का मुँह खोलती और उस मामले को बाहर निकाल लेती। आवश्यकता पूर्ति होने पर मामला पुनः ठंडे बस्ते में। आवश्यक यह था कि किसी प्रकार ऐसे विद्यालयों का परिणाम भी शून्य के स्तर तक लाया जाए।अस्तु, तमाम योग्य एवं अनुभवी अध्यापकों को वर्ष पर्यन्त दूसरे विभागों मे उपनियुक्त का दिया गया।अधिकाँश को मच्छरों की विभिन्न प्रजातियों की गणना में लगा दिया जिससे मच्छरजन्य बीमारियों से मुक्ति मिल सके। कुछ को टाइम- बेटाइम होने वाले चुनावों में लगा दिया गया। अब विद्यालय में वही अध्यापक बचे जो अध्यापक बने नहीं ,बनाए गए थे। यद्यपि इस प्रक्रिया में तीन वर्ष लगे ,परन्तु ऐसी स्थिति अवश्य आ गई कि इन विद्यालयों का निजीकरण निर्विरोध किया जा सके। निजी उर्फ पब्लिक स्कूलों ने शिक्षा को पहली बार आर्थिक आयाम प्रदान किया। राष्ट्रीय शिक्षा अधिनियम 1660 के नियमों ,उपनियमों एवं विनियमों में संशोधन किया । नई धाराएं ,उपधाराएं जोड़ी गई। प्रवेश नियम तार्किक एवं संगत बनाए गए।कुछ उल्लेखनीय नियम निम्नवत हैं-
प्रवेश 1- प्रवेश उसी छात्र या छात्रा को दिया जाएगा जिनके अभिभावकों के पास वैध पासपोर्ट एवं वीजा होगा। यह नितान्त आवश्यक है कि छात्र- छात्रा अपने अभिभावकों के साथ प्रत्येक महाद्वीप के कम से कम एक देश की यात्रा कर चुके हों।
2- छात्र-छात्रा के माता-पिता आयकर जमा करते हों और उसका विवरण देने को तैयार हों।
3-छात्र-छात्रा माता पिता की इकलौती संतान हो।यदि किसी अभिभावक के एक से अधिक सन्तान हो तो उसे दोगुना शुल्क जमा कराना होगा।
4- छात्र/छात्रा के दादा-दादी अनिवार्य रूप से छात्र/छात्रा के साथ न रहते हों ।
5-छात्र/छात्रा को अनिवार्य रूप से अंगरेजी में पेशाब करना आता हो। हिन्दी माध्यम में पेशाब करना अयोग्यता होगी।
परीक्षा - 1-प्रत्येक विद्यार्थी की प्रतिदिन परीक्षा ली जाएगी।
2- हर परिस्थिति में परीक्षा में सम्मिलित होना अनिवार्य होगा।दैनिक परीक्षा में पूर्णतः या आंशिक रूप से अनुपस्थित होने वाले छात्र/ छात्रा वर्तमान कक्षा से तीन कक्षा पीछे कर दिए जाएंगे।
3- परीक्षा शुल्क प्रश्न पत्र में मुद्रित प्रश्नों की संख्या के अनुसार अग्रिम लिया जाएगा।ऐसे विद्यार्थी जिनका शुल्क जमा नहीं होगा,उनके प्रश्नोत्तर अवैध माने जाएंगे और अंक निर्धारण परीक्षक के विवेकानुसार किया जाएगा। ऐसी दशा में एक गणित अध्यापक दो दूनी चार मानने को बाध्य नहीं होगा। सम्पूर्ण जिम्मेवारी अभिभावक की होगी।
ऐसे न जाने कितने नियम थे। अनुशासन एवं कार्यव्यवहार के नियम तो सर्वथा आदर्श थे। प्रवेश के समय ही अभिभावक से हजारों रुपये के स्टाम्प पेपर पर अनुबन्ध एवं घोषणापत्र भरवाए जाते थे। कोई भी अभिभावक अपनी संतान से विद्यालय कार्यावधि मे किसी भी परिस्थिति में मिल नही सकता था। माह में एक बार वह विद्यालय में आ सकता था। विद्यालय के प्रवेश द्वार पर दरवाजे में छोटे-छोटे छेद बनाए गए थे जिसमें से वह पांच सेकेण्ड तक अपने पुत्र या पुत्री को झांक सकता था।विद्यालय में दूरबीन सुविधा भी थी जिसका उपयोग एक हजार रुपये जमा कर एक मिनट तक संतान दर्शनाथ किया जा सकता था। एक बार प्रवेश मिल जाने पर छात्र/छात्रा को बारहवीं तक उसी स्कूल में पढ़ना पड़ता था। किसी भी परिस्थिति में उसे निकाल कर दूसरे स्कूल में नहीं पढ़ाया जा सकता था।यदि शिक्षा के दौरान ही छात्र की मृत्यु हो जाए तो उसे विद्यालय के श्मशान में सम्मान के साथ दफना दिया जाता।वहाँ हर प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध थीं-चिकित्सालय,बुक शॉप ,पेन्सिल शॉप , यूनिफार्म शॉप , कैफे, रेस्टोरेण्ट आदि -आदि।
.......... आगे जारी .......

Comments

  1. "आवश्यकता पूर्ति होने पर मामला पुनः ठंडे बस्ते में।"
    हरिशंकर राढ़ी जी।
    सुन्दर आलेख प्रस्तुत किया है।
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
  2. ठंडे बस्ते की महिमा अनन्त है।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

    ReplyDelete
  3. निजीकरन को सलाम

    ReplyDelete
  4. वाह वाह हरिशंकर जी
    आप तो वास्‍तव में
    हरि भी हो और शंकर भी
    चीरफाड़ तो कंकर की भी
    अच्‍छी करते हो
    बधाई

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