सुभाष चंद्र बोस अभी भारत में होते

सुभाष चंद्र बोस अभी भारत में होते और यह सुनते कि कांग्रेस के अंदर प्रधानमंत्री पद के नाम के लिए कोर्ट सेवा हो रहा है तो वह क्या करते। कांग्रेस में उनको कार्य कहां करने दिया गया। उस वक्त इतिहास गांधीवाद की लपेट में था। क्या कांग्रेस के अंदर अब कहीं सुभाष चंद्र बोस की धारा बह रही है या वह भी इतिहास में दफन हो गया है। अभी देश का मामला है,मुंबई में चली गोलियों का मामला है। एक ओर पाकिस्तान के साथ गलथेरी करने में लगी हुई सरकार, और दूसरी ओर प्रधानमंत्री पद के लिए अभी से नब्बे डिग्री पर झुकी हुई है कांग्रेस है। पूछों प्रधानमंत्री पद की बात करने वालों से...आतंकवाद के साथ दो- दो हाथ करने के बारे में क्या सोचता है, एक समय था जब पीस सेना श्रीलंका में राजीव गांधी ने भेजा था..कांग्रेस का सारा डोकोमेंटशन पर सोनिया गांधी कहीं नहीं है, कम से कम सरकारी लेवल पर तो बिल्कुल ही नहीं...क्या इंदरा गांधी की हत्या एग्रेसिव सिख मूवमेंट के कारण हुई थी, या मामला कुछ और था। देखने वाली बात यह है कि भारत किधर बह रहा है...और किधर बहेगा। नमस्खार....नारे बनाओ, बातों को दूर तक पहुंचाओ...लेकिन नये नारों के लिए नये गीत होने चाहिये...नये गीत के लिए कोई नईं मंजिल होनी चाहिए...डंडा खून में गीत ही गीत है, उन गीतों को घुमाने की जरूरत है...नई नारे देश को गढ़ने वाली होती है,उसे कोड़ने और खाद दे के नई फसल देने वाली बात होती है..भारत में खून बह रहा है, खून...कभी मुंबई में,कभी दिल्ली में तो कभी असम में...दोनों सीमाओं पर हमला हो रहा है और यहां रागद्दी पर तुकबंदी हो रही है...इन तुकबंदी करने वालों के लिए नई गीत तलाशने की जरूरत है...फिलहाल घोटाई वाला औषधि कारगर है....

Comments

  1. पता नहीं जी। बड़े बड़ों के मिथक बाद में टूटे। शायद सुभाष का भी टूटता।

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  2. काश ऐसा होता !
    संजीव

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  3. मुझे तो अभी तक इस बारे कुछ पता नही, लेकिन जब तक यह काग्रेस है देश का सत्यनाश जरुर पक्का है.

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  4. Namaskhhaarrrrr,
    Sach hai subhaash ke jaane ke baad bharat me shyaad hi koi sher paida hua ho.Ab to bangali billiyaan bhi luptpray hoti jaa rehi hain,communist ke jungalon me poorvi aatankistaan se aaye huye udbilao hi jyada kahon khaon kar rehe hain.
    Sach bole to humlog ke desh me democracy kaa sadiyal version hi installed hai.Neta log “z” kawach me kursi unmatt hai.Janta bechaari bar bar desh kaa rudder ayogya,bhrast ,gunde aur deshdrohi piloton ke haath me dekar sir pitpitkar plane crash hone kaa intazzar karti hai.
    Desh par paschim,poorav,uttar aur dakshin se hi nahi balki bhitar se bhi humla ho reha hai.
    Mere adhpake thande bheje me kai salwal aa rehe hain kasaab bhai ke gaon faridkot me media aur jaanch agencion ke khilaaf ISI janit artificial janwirodh aur delhi ke batla house encounter me police ke khilaf hue janwirodh ke pattern me samanta kyu hai?.Desh me ISI ki pahunch kis had tak aur kitna wyapak hai.Sansad me antulay jaise aur kitne wideshbhakt hain?.Assam me blast ke baad napakistan ki vijay pataka fahraane waale kaun hain?.Assam ke prati itni udaasinta dekhkar prashn uthata hai ki assam bharat kaa ang reh bhi gaya hai yaa nahi ya humare netaon ki siachin jaisa koi gift dene ki yojana hai?.Bharat ki suraksha aur sauhhardh ka wadh karne kitne ghuspaithi roj ghus rehe hain?.Bangladeshi bharat me voter aur rashan card kaise haasil karrele hain?Bharat ki simaaon me kaha kaha ched hain jahan emergency packing ki aawashyakta hai?
    Sawalon aur muddon kaa pahad pada hai lekin in doordrishtidoshyukt aur parshwasochi bhootnaath ke poonchon ko kursi ki malai chaatne aur asrijanaatmak lokrijhwan naarey banane se fursat miley tab to!

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  5. हम भारतीय इसी व्यर्थता में जीते हैं। आज कह रहे हैं कि सुभाष होते कल गांधी और नेहरू की बात करेंगे फिर विष्णु भगवान के कल्कि अवतार का उल्लेख करेंगे। लगता है हम किसी चीज को खुद बदलने को उद्दत ही नहीं है। फिर हमारी मानसिकता ऐसी क्यों न हो जब हम नहा कर अपने चड्डी बनियान धोने के लिए स्नानघऱ में ही छोड़ देते हैं।

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  6. dd jee filhaal humlog khud ka ghar fukwa kar tamasha dekh rahe hain aur taali bhi baja rahe hain.uparwaala kare khaak hone se pahle sadbuddhi jaagrit ho jaye.abhi bharat ki angrezon ke aane ke pahle hui durgati ki punraawriti ho rehi hai ,is baar is sone ki chiriya ko kon kon loot reha hai aur lootega hume pehchanna hoga.
    aaj poora bharat warsh aakroshit hai.is bikhre aur dishaheen aakrosh ko sanchit kar disha dene ki aawashyakta hai.janaandolan ke liye srinkhalabaddh pratikriya hona jaroori hai.is kaarya ke liye deshbhakt krantikaari neta ki aawashyakta hogi.
    hume luteron ko chinnhit kar apne aakrosh se bhasm karna hoga.

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  7. अज्ञात भाई...आप अज्ञात में क्यों रहते हैं , सुभाष चंद्र बोस भी अज्ञात हो गये थे...राय जी को लग रहा है कि हमलोग कल्कि के अवतार की प्रतीक्षा में हैं, और इतिहास को खोदकर व्यर्थ का काम कर रहे हैं। खैर, मुझे तो बीन बजाते रहने में यकीन है...उम्मीद है कि गवैये भी अपनी तान जरूर छेड़ेगे और छेड़ रहे हैं...वैसे आप भी अच्छा गाते हैं...सुर भी और ताली भी...बस इन गीतों को आमलोगों की धुन आम लोगों के कानों में जानी चाहिये....अब मारपीट करके तो हम नेता तैयार तो कर नहीं सकते...कहा जाता है कि कभी-कभी पूरी व्यवस्था ही इसलिये हिचकोले खाती है कि किसी क्रांतिवीर का जन्म हो...मुझे लग रहा है कि प्रसवपीड़ा का लंबा दौर खत्म हो चुका है...दूर क्षीतिज में कुछ चमक रहा है...लोग अपनी गीतों पर झूम रहे हैं...गांधी परिवार से संबंधित चिपनूकर के लेखों की पांच सौ प्रतियां अपने कंप्युटर से निकाल कर मैं लोगों के बीच बांट चुका हूं...और उनकी बातें तेजी से हवा में तैर रही है...जब वह अनुवाद करने में दस दिया तेल जला सकते हैं तो अपने हिस्से की ईमानदारी से मैं इतना तो कर ही सकता हूं...बाथरूम में अंडिरवियर की मानसिकता छोड़ना विदेशी गीत जैसा है...भारत के मर्द तो लंगोटी पहनते हैं...और जमीन की धूल को साबुन की तरह शरीर पर मलते हैं...

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  8. दिनेश जी ने बहुत ही बेहतरीन सवाल उठा दिया है।
    वैसे सुभाष चंद्र बोस होते ही तो क्या हो जाता? अब के नेता जिस तरह से कांग्रेस या किसी भी पार्टी में रहते हैं, कुछ क्रांति छेड़ने का जज्बा दिखाते हैं, पार्टी बना लेते हैं और जब सारी हवा निकल जाती है तो फिर उसी पार्टी में आकर पड़ जाते हैं। जब वह थे तब के इतिहास पर गौर किया जाए तो यही कहा जा सकता था कि १९२९ में सुभाष ने एक बार कांग्रेस से दुखी होकर पार्टी बनाई, दूसरी बार जब कांग्रेस में उनकी दाल नहीं गली तो १९३९ में अलग पार्टी बनाई, १९४९ में अगर होते तो फिर कांग्रेस में आकर रूठ चुके होते। १९५९ में अगर होते.. तो नेहरू से बगावत कर देते (कुछ कहा नहीं जा सकता है कि प्रधानमंत्री बन पाते या नहीं)। हां उसके बाद फिर पार्टी में शामिल होते तो नेहरू की मौत के बाद हो सकता है प्रधानमंत्री बन जाते। अगर नहीं बन पाते तो १९६९ में फिर पार्टी से बगावत कर देते और दूसरी पार्टी बना लेते.... उसके बाद.... पता नहीं।

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  9. pujniye Alok jee mera DD(dinesh.. dwiwedi jee) se mukhaatib kataaksh bhaison ko bhujang banane ke liye tha.Uski cheentein kahin aur padi hon to maafi chaahoonga.Waise meri umar mujhe salaah deti hai ki eeent se eeent hi baja doon.Par aap jaison ki bin se nikli paripakwataa ki dhoon saiyam ke writ me nachaati rehti hai.
    Ab mai apne bill me agyaatwaas ke liye jaa reha hoon.dhanyawaad!

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  10. aapne comment bheja iske liye .. shukriya.. vese mujhe.. appke sujhav ki apeksha thi... sujhav ka intjar hai....

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