टक्कर लादेनवादियों से है

कुत्ते की तरह पिटाई के बाद अजमल आमिर कमाल ने बहुत कुछ उगला है। यह फरीदकोट का रहने वाला है, जो पाकिस्तान के मुलतान में पड़ता है। इसने बताया है कि पाकिस्तान में 40 लोगों को दो राउंड में ट्रेनिंग दिया गया और मुंबई शहर पर हमला करने की तैयारी पिछले एक साल से चल रही थी। इसके लिए खासतौर पर पाकिस्तान और बांग्लादेश से लोगों को भरती किया गया था। मबई की गहराई से थाह ली गई थी, ये लोग यहां पर कई राउंड आये भी थे।
जिस समय ये सारी योजनाएं बनाई जा रही थी, लगता है उस समय रॉ के अधिकारी घास छील रहे थे। यदि समय रहते वे दूर दराज के मुल्कों में इस तरह की योजनाओं का पता नहीं चला सकते तो उनपर सरकारी पैसा बहाना फिजूल की बात है। रॉ को भंग कर देना बेहतर होगा। एक के बाद एक जिस तरह से भारत के बड़े-बड़े शहरों को निशाना बनाया जा रहा है,उसे देखकर कहा जा सकता है कि रॉ के काम करने के तरीके में कहीं कुछ गड़बड़ी है।
किसी जमाने में हाथों में बैंक के फाइल लेकर इधर से उधर घूमने वाले भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कल आपात बैठक में बैठे हुये थे, भारत की इंटेलिजेंसिया के अधिकारियों के साथ। काफी माथापच्ची करने के बाद किसी लाल बुझ्झकड़ टाइप के सलाहकार ने इन्हें (हालांकि प्रधानमंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह की स्थिति एक सलाहकार से भी बद्तर है। ) स्पेशल कमांडो फोस के गठन की बात कही, ताकि इस तरह के हमलों से तुरंत निपटा जा सके।
खाताबही देखने वाले प्रधानमंत्री की खोपड़ी में यह बात क्यों नहीं घुस रही है कि अब सवाल इस तरह के हमला के बाद की स्थितियों से निपटने का नहीं है, बल्कि इस तरह के हमलों को रोकने का है। कंट्री को डिफेंस की मुद्रा में लेना एक मनोवै्ज्ञानिक भूल है। जरूरत है एक एसे मैकेनिज्म बनाने की जो इस तरह की योजना बनाने वालों के बीच में अपनी पैठ बनाये, और उन्हें लपेट मारे। अपनी गोलपोस्ट को बचाने से अच्छा है गेंद को सामने के गोलपोस्ट में धकेलते रहे, यानि अटैक इज द बेस्ट पोलिसी। जरूरत है आतंकियों को डिफेन्सिव करने का और यह अटैक से संभव हो सकता है।
खाताबही देखने वाले प्रधानमंत्री के बस की बात नहीं है कि वह इतना दूर तक सोच सके। उनकी औकात मदारी वाले बंदर से जादा नहीं है,फर्क सिर्फ इतना है कि उनके गले में रस्सी नहीं है। लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, दसों इंद्रियों से अपने आका की बात वह खूब समझते है। और नहीं भी समझते है तो अपनी मुंडी का इस्तेमाल वह वैसे ही करते हैं मानों सब समझ रहे हैं।
रूस की खुफिया एजेंसी इस मामले में अलकायदा की ओर इशारा कर रही है। यदि इस पर यकीन करे तो इसके तार सीधे लादेन और उसके गिरोह से जुड़ता है। और इसलामिक पद्धति पर उसका युद्ध का नमूना पूरी दुनिया देख चुका है। ट्वीन टॉवर की लपलपाती लुई लपटों को याद कर लीजिये, और फिर ताज से निकलते लपटों को। टक्कर लादेनवादियों से है। और इनकी चौतरफा पिटाई होनी चाहिए।
नरीमन हाउस में पांच यहूदियो को शैतानों ने मार डाला है, मोसाद वाले भारत आने के लिए छटापटा रहे हैं। मोसद वालों को इस तरह के मामलों से निपटने का अच्छा खासा अनुभव है। इस मुद्दे पर इनके साथ लम्बे समय का घठजोड़ किया जा सकता है, बिना कागज पत्तर के। एफबीआई की एक टीम भी भारत आ रही है। एफबीआई वाले अपने तरीके से इस मामले को समझेंगे, इनसे भारत को कुछ खास लाभ नहीं होने वाला है। औपचारिकता पूरी करके इनको भेज देना चाहिए। एशिया में -खासकर मिडिल ईस्ट में-एफबीआई का खुद का नेटवर्क कमजोर है। अफगानिस्तान और इराक पर हमला के बाद मिडल ईस्ट में इन्हें अपने लिए काम करने वाले एजेंटे नहीं मिल रहे हैं।
मुंबई पर लादेनवादियों शैतानों की एक टुकड़ी ने हमला किया है, यह मान लेना कि और हमले नहीं होंगे, अपने आप को धोखे में रखना है। इससे निपटने के लिए हर लेवल पर कमर कसनी होगी। खाताबही वाले प्रधानमंत्री से कुछ भी उम्मीद करना बेकार है। मैरी अंतोनियोत को डेमोक्रेटिक तरीके से चूल्हे चौकों में लगाने की जरूरत है।

Comments

  1. सब् कुछ जानते हुए भी हमारे नेता अँजान है,ये अफसोस की बात नही तो क्या है.

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  2. मैं नमन करती हूं उन सभी शहीदों को जिन्होंने हमारी सुख शान्ति के लिये अपनी जान की बाजी लगायी है।

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  3. एक व्यक्ति की क्यों कहें, है सिस्टम का दोष.
    मेडम इटली में सिमटा, जिसका सारा जोश.
    सिमटा सारा जोश, व्यस्त हैं दोनों पाले.
    देश-धर्म की बात, ठंडे बस्ते में डाले.
    कह साधक कविराय,साधना अब शक्ति की.
    सिस्तम को बदलो अब बात नहीं एक व्यक्ति की.

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