दूध, दारू और पानी

हाल ही मे होली पर मेरे एक मित्र, जिन्हे हम शोर्ट मे जे डी कहते है, ने एक मेसेज भेजा. मेसेज का लब्बोलुआब यह था कि भाई ऐन होली के दिन हमारे देश मे हजारो करोड गैलन पानी फालतू खर्च कर दिया जाता है. बेशक उनके इस सन्देश से हमे प्रभावित होना ही चाहिए. हम प्रभावित हुए भी. मन मे आया कि इस बार होली न मनाई जाए. फालतू पानी को बर्बाद न किया जाए. लेकिन हकीकत मे ऐसा कभी हो कहा पाता है. अव्वल तो सच यह है कि अगर ऐसे ही हम हिन्दुस्तानी अच्छी लगने वाली हर बात पर अमल करते चले तो खुद हमारी ही मुसीबत हो जाए.

यकीन न हो तो कर के देख लीजिए. इस बात से किसी को ऐतराज थोडे ही हो सकता है कि अगर हम सडक पर चल रहे हो तो ट्रैफिक के नियमो का ठीक-ठीक अनुपालन करते चले. पर भला करता कौन है. मैने एक बार कर के देखा है. इसी दिल्ली मे एक चौराहे पर लाल बत्ती जली और मै ठहर गया. इंतजार करने लगा कि भाई बत्ती हरी हो तो मै गियर बदलू और एक्सीलेटर उमेठूँ. इसके पहले कि बत्ती हरी होती जोर की पो-पो टाइप चिग्घाड मेरे कानो मे पडी और मै समझ गया कि किसी महान हस्ती को रास्ता चाहिए. उसकी दरकार यही है कि मै बत्ती के रंग की परवाह न करते हुए आगे बढू और उसे बढने दूँ. पर मेरे सिर पर तो नियम की

गठरी लदी थी. मै भला आगे कैसे बढ सकता था! लेकिन मै कौन सा आनन्द भवन के दायरे मे पैदा हुआ हूँ जो मेरे लिए इस महान देश की जनता इंतजार कर ले. पीछे आ रहे सज्जन ने मेरा इंतजार नही किया और उन्होने मुझे ठोंक दिया. अब इसके बाद जो हुआ होगा वह तो आप समझ ही सकते है.

वैसे ऐसे नियमो और उनके इसी तरह के अनुपालन के उदाहरण तो कई दिए जा सकते है, पर मै दूंगा नही. बस ये समझिए कि इसके बाद मै इस बात से बचता हूँ कि कही कोई नियम या सिद्धांत मुझे बहुत ज्यादा प्रभावित न कर दे, वरना फिर ....... खैर, उनकी इस बात ने मुझे प्रभावित तो किया पर मै इस चाह कर भी अमल नही कर सका. इसके लिए एक तर्क मुझे तुरंत मिल गया. अखबार के जिस पन्ने पर पेयजल के लिए दिल्ली के कई इलाको के बेहाल होने की खबर थी, उसी पर एक और फोटो भी लगा था. वाटर सप्लाई वाले बम्मे से हरहरा पानी का फव्वारा सा छूटता हुआ दिख रहा था. कैप्शन लगा था कि दिल्ली के लोग पेयजल के लिए बेहाल है, तभी हमारी सरकारी व्यवस्था इस तरह मुस्तैद है कि हजारो गैलन पेयजल इस तरह गन्दे नाले के हवाले हो रहा है.

यकीन मानिए, मुझे यह जानकर सचमुच बहुत संतोष हुआ कि चलो अब अपन की होली कायदे से मन जाएगी और किसी अपराध बोध का शिकार भी होना नही पडेगा. हर सच्चे भारतीय की तरह मै भी चुपचाप उठा और मेसेज पूरा पढे बगैर होली के हुडदंग मे शामिल होने चला गया. अजी जम कर होली खेली मैने. पर लौट कर मैने फिर जे डी के मेसेज पर नजर डाली. उनका आग्रह था कि इस बार होली पर एक संकल्प ले. वह यह कि हम पानी बचाएंगे. पर साहब बचाएंगे कैसे? तो ऐसे. दारू नीट पिएंगे. राष्ट्रहित मे पानी बचाने के लिए हम दारू मे पानी नही मिलाएंगे. नीट पिएंगे. खैर पी भी नीट. पर इसलिए नही कि जे डी के मेसेज का असर था. सिर्फ इसलिए कि पानी नही आ रहा था.

फिर भी यह लिखने का साहस मै अभी तक नही जुटा पाया था. पर अब मैने जुटा लिया है और इसके लिए मै वास्तव मे तह-ए-दिल से दिल्ली सरकार का आभारी हू. मै ही क्यो जी, मेरे जैसे तमाम सुर उसके आभारी है. आज की ताजा खबर यह है कि दिल्ली सरकार ने बजट मे ऐसी व्यवस्था बना दी है कि पानी की किल्लत भले हो पर दारू की किल्लत नही होने पाएगी. वह खूब मिलेगी और सबको मिलेगी. हर जगह मिलेगी. शर्त सिर्फ यह है कि जेब मे रकम हो.

इसके बाद से अभी जे डी से सम्पर्क तो नही हो पाया है, पर मै सोच रहा हूँ कि जरूर इसके पीछे कोई न कोई लोचा तो है. चाहे तो उसने यह मेसेज दिल्ली सरकार को भेजा हो या फिर दिल्ली सरकार ने ऐसा ही कोई मेसेज उसे भेजा हो. या फिर यह भी तो हो सकता है कि दोनो के बीच कोई समझौता हुआ हो. दिल्ली सरकार दूध की दुकाने नही बढाएगी, पर दूध की दुकाने बढाएगी. लेकिन नही-नही. मुझे ऐसा नही सोचना चाहिए. दिल्ली सरकार दिल्ली वालो की जैसी हितैषी है वैसे हितैषी सरकार मिलनी मुश्किल है. दूध का नाम आते ही मै समझ गया.  निश्चित रूप से यह सरकार शुद्धता की आग्रही है. जब पानी होता है तो उसका उपयोग पीने मे कम दूध मे मिलाने मे ज्यादा होता है. दारू की दुकाने तो ज्यादा होनी ही चाहिए. कम से कम उसके सिंथेटिक होने की आशंका तो नही होती. पक्का सरकार ने नए बजट मे बहुत अच्छा काम कीता जी!                     

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Comments

  1. भाई बात ठीक हे पानी बचाओ दारु चढाओ यही नया नारा हो, सभी को सुबह सुबह दो गिलास नीड दारू पीलओ,सच मे भारत बडी तरक्की करे गा,ओर यह ट्रैफिक के नियमो का ठीक-ठीक अनुपालन करे गे सभी जब प्यास लगे दारु,जब सभी दारु पीकर अपने अपने वाहन चलायेगे तो भारत की जनसाख्या पर भी काबु पाया जा सके गा, चोरिया भी नही होगी,बलात्कार भी बन्द अरे सब जब दारु मे मस्त होगे तो कितना आनाज बचे गा.

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  2. कहे पर , पढ़े पर, सुने पर , गुने पर अमल न करना ही तो हमारा संस्कार है !
    बढ़िया है....

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  3. सही है। आप आदतें सुधार लें। देश की रफ्तार में बाधक न हों। वर्ना ऐसे ही कोई रोज रोज आपको ठोकता रहेगा।

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  4. ज्ञान भइया!
    आपकी सलाह सिर माथे पर. मैंने आदतें सुधारने की शुरुआत कर दी है. उम्मीद है कि अगर अभी नहीं तो कल और वह भी नहीं तो अगले जन्म में सफलता जरूर मिल जाएगी. जल्दबाजी आप जानते ही हैं शैतान का काम है और मैं शैतान के रास्ते पर नहीं चल सकता. बोलिए जय भैरो बाबा की.

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  5. isht dev ji ,
    ye niyam kya hote hen!!! kahan paye jate hen!!! Kya bhav milte hen!!! jai ram ji ki

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