अपने मन की
बात अहेतुक
जाने
किससे कहॉ
कहूँगा मैं !
युग-युग से
यूँ भटक रहा हूँ
जाने
कहां रहूँगा मैं!
गिरि गह्वर
सहज गिराम
कस्बे और
शहर में.
ऋषि कणाद
की कुटिया
राजा भोज के
घर में.
ग्राम कूप में
पोखर में
कानन में
वन में,
लघु सरिता
या
महासागर में.
महाकाल का
मैं प्रतिनिधि हूँ
मुझको काल पकड़ न पाता,
किसको
यहाँ गहूँगा मैं!
महाशून्य में
स्वयं प्रकृति का
हुआ आसवन.
आंखों से
निकली गंगा
बूँद-बूँद कर
किया आचमन.
वेदों की
क्यारी में
पल कर
पौधे लहराए,
सघन हुए
बने नन्दन वन.
उस नन्दन वन से
उजड़ा
इंद्र सभा का
यक्ष हूँ शापित-
जाने कहां
गिरूंगा मैं!
इष्ट देव सांकृत्यायन
The term IYATTA means the essence of existence. I think this is nothing, but an exploration. Exploration for absolute pleasure of human being. Not for a person, but for entire world. Let us be together, for a great exploration. May we be associates of one another!
Sunday, 29 April 2007
Saturday, 28 April 2007
बातें अपनी सी
सर जमीन-ए-हिंद पर अक्वाम-ए-आलम के फ़िराक
क़ाफ़िले बस्ते गए हिन्दोस्तां बनता गया
फिराक गोरखपुरी
क़ाफ़िले बस्ते गए हिन्दोस्तां बनता गया
फिराक गोरखपुरी
बेटी पन्ना धाय की
कदम-कदम पर
शिखर बने हैं
शिखरों पर सिंहासन,
हर सिंहासन पर
सज-धज कर
चढ़ी है
देवी न्याय की.
अग्नि परीक्षा को तत्पर
बेटी पन्ना धाय की.
दोनों आंखों पर
पट्टी बांधे
हाथों में लिए
तराजू .
ख़ून भरा
पलड़ा ऊपर है
दबा है
जिसमें काजू .
माननीय भैंसा जीं के
अभिवादन में -
सभी दफाओं से
लिख दीं
हमने सांसत गाय की.
अग्नि परीक्षा को तत्पर
बेटी पन्ना धाय की.
सारे मेंढक
व्हेल बन गए
अब जाएँगे
समुद्र देखने.
महामहिम भी आएंगे
राग ललित में
रेंकने.
रंगे सियारों
का दावा है
इस जंगल की
अब
वही करेंगे
नायकी.
अग्नि परीक्षा को तत्पर
बेटी पन्ना धाय की.
इष्ट देव सांकृत्यायन
शिखर बने हैं
शिखरों पर सिंहासन,
हर सिंहासन पर
सज-धज कर
चढ़ी है
देवी न्याय की.
अग्नि परीक्षा को तत्पर
बेटी पन्ना धाय की.
दोनों आंखों पर
पट्टी बांधे
हाथों में लिए
तराजू .
ख़ून भरा
पलड़ा ऊपर है
दबा है
जिसमें काजू .
माननीय भैंसा जीं के
अभिवादन में -
सभी दफाओं से
लिख दीं
हमने सांसत गाय की.
अग्नि परीक्षा को तत्पर
बेटी पन्ना धाय की.
सारे मेंढक
व्हेल बन गए
अब जाएँगे
समुद्र देखने.
महामहिम भी आएंगे
राग ललित में
रेंकने.
रंगे सियारों
का दावा है
इस जंगल की
अब
वही करेंगे
नायकी.
अग्नि परीक्षा को तत्पर
बेटी पन्ना धाय की.
इष्ट देव सांकृत्यायन
पहुंचा, कि नहीं
घूरे को
बूंदाबांदी के बाद
घाम,
बूढ़े बरगद को
सादर प्रणाम -
पहुँचा कि नहीं?
खादी की धोती के नीचे
आयातित ब्रीफ,
और स्वदेशी के नारे पर
रेखांकित ग्रीफ.
अंकल ने पूछा है,
पित्रिघात का
पूरा दाम -
पहुँचा कि नहीं?
समान संहिता
आचार-विचार की
मरुथल में
क्रीडा
जल-विहार की
फिर भी देखो
व्हाइट हॉउस को
जय श्री राम -
पहुँचा कि नहीं?
इष्ट देव सांकृत्यायन
बूंदाबांदी के बाद
घाम,
बूढ़े बरगद को
सादर प्रणाम -
पहुँचा कि नहीं?
खादी की धोती के नीचे
आयातित ब्रीफ,
और स्वदेशी के नारे पर
रेखांकित ग्रीफ.
अंकल ने पूछा है,
पित्रिघात का
पूरा दाम -
पहुँचा कि नहीं?
समान संहिता
आचार-विचार की
मरुथल में
क्रीडा
जल-विहार की
फिर भी देखो
व्हाइट हॉउस को
जय श्री राम -
पहुँचा कि नहीं?
इष्ट देव सांकृत्यायन
संग रहते हैं
धूप में
डूबे हुए
जलरंग कहते हैं.
रेत के
सागर में
हमारे अंग बहते हैं
कई घरों की
छीन कर
रश्मियों का
रथ रुका है.
जूझते
रह कर
निरंतर
जिनसे
हमारा
मन थका है.
हर पल
विडम्बित
हम उन्हीं के
संग रहते हैं.
वर्जनाओं की
कठिन
वेदी पर
सुखद संत्रास ऐसे.
कर रही हो
धारा यहाँ
काल का
उपहास जैसे.
किसको पता है
किस तरह
टूटकर
क्रमभंग सहते हैं.
इष्ट देव सांकृत्यायन
डूबे हुए
जलरंग कहते हैं.
रेत के
सागर में
हमारे अंग बहते हैं
कई घरों की
छीन कर
रश्मियों का
रथ रुका है.
जूझते
रह कर
निरंतर
जिनसे
हमारा
मन थका है.
हर पल
विडम्बित
हम उन्हीं के
संग रहते हैं.
वर्जनाओं की
कठिन
वेदी पर
सुखद संत्रास ऐसे.
कर रही हो
धारा यहाँ
काल का
उपहास जैसे.
किसको पता है
किस तरह
टूटकर
क्रमभंग सहते हैं.
इष्ट देव सांकृत्यायन
इन आंखों में
पूरब से
आती है
या आती है
पश्चिम से -
एक किरण
सूरज की
दिखती है
इन आखों में.
मैं संकल्पित
जाह्नवी से
कन्धों पर
है कांवर.
आना चाहो
तो आ जाना
तुम स्वयं
विवर्त से बाहर.
तुमको ढून्ढूं
मंजरियों में
तो पाऊं शाखों में.
इन आखों में.
सपने जैसा
शील तुम्हारा
और ख्यालों
सा रुप.
पानी जीने वाली
मछ्ली ही
पी जाती है धूप.
तुम तो
बस
तुम ही हो
किंचित
उपमेय नहीं.
कैसे गिन लूं
तुमको
मैं लाखों में.
इन आखों में.
आती है
या आती है
पश्चिम से -
एक किरण
सूरज की
दिखती है
इन आखों में.
मैं संकल्पित
जाह्नवी से
कन्धों पर
है कांवर.
आना चाहो
तो आ जाना
तुम स्वयं
विवर्त से बाहर.
तुमको ढून्ढूं
मंजरियों में
तो पाऊं शाखों में.
इन आखों में.
सपने जैसा
शील तुम्हारा
और ख्यालों
सा रुप.
पानी जीने वाली
मछ्ली ही
पी जाती है धूप.
तुम तो
बस
तुम ही हो
किंचित
उपमेय नहीं.
कैसे गिन लूं
तुमको
मैं लाखों में.
इन आखों में.
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